“मुक्तक”
मापनी- 212 212 1222
हर पन्ने लिख गए वसीयत जो।
पढ़ उसे फिर बता हकीकत जो।
देख स्याही कलम भरी है क्या-
क्या लिखे रख गए जरूरत जो॥-1
गाँव अपना दुराव अपनों से।
छाँव खोकर लगाव सपनों से।
किस कदर छा रही बिरानी अब-
तंग गलियाँ रसाव नपनों से॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी