कविता

दुनिया

आह की तुम बात न करो ,
आंसुओं को कब भिगो पाया है जहां
बहती ही रही नदी निस्वार्थ भाव से
किनारों को कब साहिल दे पाया है जहाँ ।

प्यार की तुम बात न करो ,
रिश्तों को कब निभा पाया है जहां
लिखती ही रही कलम सबका दर्द
दर्द को कब समझ पाया है जहाँ ।

न्याय की तुम बात न करो ,
खुद को भूला दिया खुश करने को जहां
बेधते रहे वही अपनों के भेष में
कब किसी का बन पाया है जहां

अनजान की तुम बात न करो
कब जानने वालों ने छोड़ा ये जहां
खोदते ही रहे मिट्टी जड़ तक
अपनों के जुल्मसे थर्राया ये जहां

सहारों की तुम बात न करो
अपना बनकर रुलाता है ये जहां
भंवर में छोड़कर अपने ही हमसाये को
कोई बन जाता है जब अनजान यहां ।

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017