ग़ज़ल
अक्सीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है
बेहोश मुझे करने’ मय-ए-जाम बहुत है |
वादा किया’ देंगे सभी’ को घर, नहीं’ आशा
टूटी है’ कुटी पर मुझे’ आराम बहुत है |
प्रासाद विशाल और सुभीता सभी’ भरपूर
इंसान हैं’ दागी सभी’, बदनाम बहुत है |
है राजनयिक दंड से’ ऊपर, यही’ अभिमान
शासन करे स्वीकार, कि इलज़ाम बहुत है |
साकी की’ इनायत क्या’ कहे, दिल का फ़साना
आगोश में’ थी मेरे’ ये ईनाम बहुत है |
कालीपद ‘प्रसाद’