ध्यान की शक्ति
थाईलैंड की गुफा में स्कूली बच्चों की फ़ुटबॉल टीम के १२ खिलाड़ियों और उनके प्रशिक्षक (कोच) के फँसने और फिर लगभग १५-२० दिन बाद निकाले जाने का समाचार आपने पढ़ा/सुना होगा। इस टीम का २५ वर्षीय कोच, जो भूमिगत गुफ़ाओं में लड़कों के साथ फँस गया था, लगभग १० वर्ष तक बौद्ध भिक्षु रहा था और प्रतिदिन एक घंटे तक ध्यान किया करता था।
सामान्य लोग और मनोवैज्ञानिक यह सोचकर आश्चर्यचकित थे कि पहाड़ों में ज़मीन के एक किमी नीचे उस बन्द गुफा में जहाँ घुप अँधेरा था और चारों ओर पानी ही पानी था किस वस्तु ने शान्त रहने में बच्चों की सहायता की थी।
वास्तव में उन बच्चों को उनके प्रशिक्षक ने उस समय ध्यान करना सिखाया था, जिस समय वे बचाव टीमों के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब थाई कोच से पूछा गया कि वह बच्चों को गुफा में किस प्रकार जीवित रख सका, तो उसने बताया कि जब वह भिक्षु था तो एक गुफा में महीनों तक प्रतिदिन गहरे ध्यान का अभ्यास किया करता था। अत: वह जानता था कि गुफा में किस प्रकार किसी व्यक्ति को शान्त और जीवित रखा जा सकता है, जहाँ बहुत अधिक असामान्य परिस्थितियाँ थीं, जैसे- घोर अन्धकार, चारों ओर जल, और बहुत कम प्राणवायु (ऑक्सीजन)।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि सभी आध्यात्मिक क्रियाओं में ध्यान सर्वोपरि है, कोई जप, तप और अन्य योग क्रियायें इसकी बराबरी नहीं कर सकतीं। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में अधिकांश संगठनों में प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करने पर बहुत कम ज़ोर दिया जाता है, जिसको पश्चिमी देशों में अब तेज़ी से अपनाया जा रहा है।
जहाँ तक मेरी जानकारी है बौद्ध धर्मानुयायी अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं की तुलना में ध्यान पर बहुत ज़ोर देते हैं और वह भी गहरा ध्यान करने पर। जब वे कहते हैं कि हम एक घंटा ध्यान करते हैं, तो भले ही वे अपने मस्तिष्क को शान्त रख पाते हों या नहीं, परन्तु निश्चित रूप से वे एक घंटे तक विचारशून्यता की स्थिति में किसी आसन पर अवश्य बैठते हैं, जो अपने आप में हमारी नाड़ियों को उत्तेजक और असामान्य परिस्थितियों में शान्त रखने में बहुत सहायक होता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हम चाहे कितने भी व्यस्त हों और चाहे हमारे पास समय का कितना भी अभाव हो, फिर भी हमें प्रतिदिन कुछ मिनट का समय ध्यान के लिए अवश्य निकालना चाहिए। यह हमें अनेक संकटों और व्याधियों से बचाता है।
— विजय कुमार सिंघल
आषाढ़ अमावस्या, सं २०७५ वि (१३ जुलाई २०१८)