गुजारिश….
आओ प्रिये!
बैठो न पल दो पल साथ मेरे
करनी है कुछ गुफ्तगू
कुछ शिकवे हैं कुछ शिकायतें
करनी है कुछ गुजारिशें
सुनो न!
कुछ लिखी हैं मैंने
मन में उमड़ते घुमड़ते
कितने ही भावों को
किया है पंक्तिबद्ध मैंने
लिखने लगी और लिखती ही गई
उंगलियां थकती नहीं
मन थमता नहीं
दिल में धौंकनी सी चलती है
उठ रहा तूफान
बेकाबू सा मन
हो जाता है हलकान
अब सम्हलता नहीं
भावों के ऐसे भंवर में
बस डूबती जाती हूँ
कितना कुछ है कहना
कितनी ही बातें हैं करनी
एक-एक लम्हे को
बड़ी जतन से
जोड़के रखा है
वक्त थमा नहीं
मैं रूकी नहीं
पर वो यादें, वो लम्हे
जैसे अभी की हैं
नहीं कल परसों की सी हैं
इतने बरस बीत गए
जाने कैसे हम
वक्त से जीत गए
साथ-साथ चलते-चलते
जीते-जीते जीत गए।
वाह वाह