गीतिका/ग़ज़ल

 “गीतिका”

समांत- अही, पदांत- है मात्रा भार-29,  16, 13 पर यति

हर मौसम के सुबह शाम से, इक मुलाक़ात रही है

सूरज अपनी चाल चले तो, दिन और रात सही है

भोर कभी जल्दी आ जाती, तब शाम शहर सजाती

रात कभी दिल दुखा बहकती, वक्त की बात यही है॥

हरियाली हर ऋतु को भाती, जब पथ पुष्प मुसुकाते

गुंजन करते भँवरे पल-पल, हवा मदमात बही है॥

बूंदे बरसाती मतवाली, आ राहों को घेरती

नहला जाती मन भावों को, पथिक पुलकात मही है॥

रिमझिम-रिमझिम सावन सैयां, धान-पान परिधान में

टप-टप गेसू टपक रहे जल, लगता प्रपात यही है॥

उफन-उफन कर नदियां बहती, माझी नौका पार कर

सागर से मिलने को आतुर, बिखर औकात ढ़ही है॥

गौतम सम्हल इन लहरों से, बिच धारा में जो पले

फिर से दुबारा कौन मिलता, कारवां नात यही है॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ