गोपालदास नीरज: एक श्रद्धांजलि, लगेंगी सदियां भुलाने में
साहित्य के आकाश के एक अमिट हस्ताक्षर बने गोपालदास नीरज जी, आपको श्रद्धांजलि देने के लिए हमारे पास शायद शब्द ही नहीं मिलेंगे. आपके अपने शब्द ही आपकी श्रद्धांजलि बन जाएंगे. आपने लिखा था-
”इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥”
सचमुच आपको भुलाने में हमें सदियां लग जाएंगी. पर हम आपको भुलाएंगे भी भला क्यों और भुलाएंगे भी कैसे? आपसे ही तो हमने प्रेरणा पाकर कलम थामी है और आपके ही गीत सुन-सुनकर हम पले-बढ़े हैं. आपने एक गीत लिखा था-
”ए भाई जरा देख के चलो”
यह केवल एक गीत ही नहीं था, जीवन का पूरा फलसफा था. आज भी अक्सर हम यही कहते हैं-
”ए भाई जरा देख के चलो”
आपके जैसा श्रेष्ठ कवि, श्रेष्ठ गीतकार और सबसे अधिक श्रेष्ठ व्यक्ति कई दशकों में नहीं हो सका है. आपने कहा- ‘कारवां गुजर गया’.
श्रद्धांजलि के आंसुओं के साथ हम तो बस इतना ही कहेंगे-
”कारवां गुजर गया
गुब्बार क्या देखें?
आप नहीं रहे अफसोस है,
जमाने को क्या देखें?”
अब कौन कहेगा, ‘ऐ भाई! जरा देख के चलो’
‘लिखे जो खत तुझे’, ‘ऐ भाई! जरा देख के चलो’, ‘दिल आज शायर है’, ‘जीवन की बगिया महकेगी’, ‘खिलते हैं गुल यहां’ जैसे मशहूर गानों के जरिए लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले हिंदी के प्रख्यात गीतकार और कवि गोपाल दास नीरज 93 वर्ष की उम्र में गुरुवार को दुनिया छोड़ चले, लेकिन ऐसा जिंदादिल कवि कभी मरता है क्या!
अब हम कहेंगे- ‘ऐ भाई! जरा देख के चलो’