इनकम
आज टोमैटो केचप फैक्ट्री की इनकम पर एक समाचार पढ़ा. समाचार बहुत आकर्षक था-
2 लाख में लग जाएगी टोमैटो केचप फैक्ट्री, 35 हजार मंथली हो सकती है इनकम, सरकार देगी 75% मदद
पर मेरा ध्यान समाचार पर नहीं रुका, वह तो 40 साल पहले के एक किस्से पर चला गया.
”मेरे बेटे ने टोमैटो केचप फैक्ट्री लगाई है, अब उसको फैक्ट्री से निकलने वाले कचरे के निपटान की समस्या आ रही है. सफाई इंस्पैक्टर को काफी खिलाना पड़ता है, देखें कब तक ऐसा चल पाता है.” वे बोले थे.
”मेरे बेटे ने आर्टिफिशल ज्वैलरी की शॉप खोली है, अब आर्टिफिशल ज्वैलरी की शॉप को केवल नौकर के सहारे तो नहीं छोड़ा जा सकता है, सो उसका कहना है- ”पापा, आप आकर दुकान पर बैठो”. ”अब मैं ठहरा अपनी एजेंसी के बिज़नेस का अपनी शर्तों का मालिक, मैं भला ग्राहकों के निहोरे कहां से करता फिरूंगा.” फिर एक दिन वे बोले थे.
”मेरे बेटे ने मेरी बनी-बनाई एजेंसी के बिज़नेस को ही संभाल लिया है. अब घर में मैं संभालता हूं, बाहर का काम वह देख लेता है, इनकम बढ़िया हो रही है.” फिर बहुत समय बाद एक दिन वे बोले थे.
बिज़नेस तो ऐसे ही जमते-जमते जमता है और इनकम देता है.
यह सच है, कि बिज़नेस ऐसे ही जमते-जमते जमता है और इनकम देता है. बिज़नेस जमाने के लिए पहले अच्छी तरह सोच-समझकर योजना बनानी पड़ती है. इनकम के पहले खासा इंवेस्टमेंट भी करना पड़ता है. बिज़नेस में धन से ज्यादा धैर्य और ग्राहकों को लुभाने की लुभावनी ट्रिक्स की भी आवश्यकता होती है.
सही कहा बहिन जी. मुझे बिज़नस का कोई अनुभव नहीं है. लेकिन आपकी बात सत्य है.
प्रिय विजय भाई जी, हम चाहे साहित्यिक लघुकथाएं ही लिखते हैं, पर अधिकतर बिलकुल सत्यकथाएं होती हैं. यह भी एक सत्यकथा है. कभी-कभी तीर तुक्के वाला बिज़नेस भी वारे न्यारे कर देता है. बिज़नेस में भी अविश्वसनीयता समाहित है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.