कलम को तेज़ तलवार ही न बनवाओ ।
इस दौर का हाल हमसे ना लिखवाओ,
दुश्मन चारों तरफ हैं जरा संभल जाओ ।
उपयोग इंसा करने लगा है इंसा का आज ,
कलम को तेज़ तलवार ही न बनवाओ ।
आँधियाँ आएंगी रेत उड़ेगी हवा में ही,
बच निकलो बैचेन घड़ियां न करवाओ ।
मुंह में मिठास हाथ में खंज़र लिए है आदमी,
नकाबों पे नकाब पहने है जरा हटवाओ ।
मन पे अच्छाई की चादर लिए ना घूमो,
जबरजस्ती है दिखावा बोझ ना उठाओ ।
चीखने लगेगें भरी महफ़िल में सभी नामर्द,
उन्हें गुनाह जरा धीमी आवाज़ में सुनाओ ।
और क्या लिख पायेगी ये नूतन कलम अब,
आराम से जीना है जिंदगी खतरे में न पड़वाओ ।।।
— जयति जैन “नूतन”