सामाजिक

चक्करव्यूह

कुछ बातें आहत करती हैं तो वही कुछ बातें आगे का राह भी प्रकाशित करती हैं. अब नजरिया अपना-अपना गिलास आधा भरा या आधा खाली.

#सवाल_बहना कल्पना भट्ट जी के

#जबाब_विभा रानी श्रीवास्तव के

01. प्रश्न :- साहित्य में ब्रह्म समाया हुआ है, फिर उसको लिखने वालों का मन छोटा क्यों?

उत्तर:- ब्रह्म तो कण-कण में समाया हुआ है. श्वेत श्याम एक दूसरे की पहचान बताते हैं.  कबीरा भांति-भांति के जीव. हर जगह तो साहित्य वंचित क्यों भला. किसका मन कब बड़ा कब छोटा-खोटा तय कहाँ होता. हम जिसे बड़े मन का मान कर चलें दूसरे उसे छोटा मान कर चलता. सोच हमारी बड़ी छोटी हुई न.

02. प्रश्न :- गलती हर इंसान से होती है फिर सिर्फ छोटा या कनिष्ठ कसूरवार क्यों?
उत्तर :- हमेशा कहती हूँ अपने मूड का स्विच दूसरों की बातों के अधीन नहीं हो. किसके क्या कहने से क्या साबित होता है इस फेर में क्यों पड़ना. किसी ने कहा कौआ कान ले गया.

03. प्रश्न :- हम सभी विद्यार्थी होते हैं कोई आगे कोई पीछे, फिर हम से बढ़कर कोई नहीं की भावना क्यों?

उत्तर :- रावण-कंस का उदाहरण , गीता , रामायण , महाभारत , वर्त्तमान में लिखी जा रही कहानियाँ , आस-पास के उदाहरण से लोग नहीं सीखते.

04. प्रश्न :- गुटबाजी हर जगह होती है , हमारा अपना गुट अच्छा और दूसरे का गुट बुरा क्यों?

उत्तर :- चम्मचों की संख्या किधर ज्यादा. देखनी होगी न.

05. प्रश्न :- इंसान श्रेष्ठ है क्योंकि उसे अच्छे बुरे की पहचान होती है, वह सोच सकता है, फिर दूसरों को कुचलने की ही सोच क्यों?

उत्तर :- अच्छा सोचता है अच्छाई करता है , बुरा सोचता है बुराई करता है. रही बात कुचलने की सोचना तो नियति समय किसी का बुरा होता है तभी किसी इंसान का बुरा करना फलित होता…. अरे ऊपर वाला अपना हांथ नहीं रंगता न

06. प्रश्न :- स्वस्थ वातावरण के लिए सभी दुहाई देते है फिर वातावरण को दूषित करने के लिए #ततपरता क्यों?

उत्तर :- सुअर मैला में ही बैठता है.

07. प्रश्न :- साहित्य राजनीति की धज्जियाँ उड़ाने के लिए सक्षम होता है फिर साहित्य में भी राजनीति क्यों?

उत्तर:- जिस नीति से राज हो सके, फिर राज करना कौन नहीं चाहे. राजनीति के शिकार नीरज जी शिक्षक की नौकरी त्याग दिए. आज दुनिया भी.

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ