ग़ज़ल 2
जुबां ने बात बहुत कर ली है मगर
कुछ तो खामोशियों को कहने दो।
अभी सीने में ये सांस चलती है
अभी धडकन को दर्द सहने दो।
करेंगे क्या आंखों में समंदर ये
आज बह जाए अश्क बहने दो।
जहां दिल दिल की सदा सुन पाए
हमको तन्हा तन्हाई में रहने दो।
क्या जरूरत है हर बात मान लें
दिल कहता है गर तो कहने दो
टूट गया ‘जानिब’ घर मेरे अरमानों का
कि जो बचा है उसको ढहने दो।
— पावनी जानिब, सीतापुर