गीत/नवगीत

“अज्ञानी को ज्ञान नहीं”

दुर्गम पथरीला पथ है, जिसमें कोई सोपान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।

रहते हैं आराध्य देव, उत्तुंग शैल के शिखरों में,
कैसे दर्शन करूँ आपके, शक्ति नहीं है पैरों में,
चरणामृत मिल जाए मुझे, ऐसा मेरा शुभदान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।

तुम हो जग के कर्ता-हर्ता, शिव-शम्भू कल्याण करो,
उरमन्दिर में पार्वती के साथ, देव तुम चरण धरो,
पूजा और वन्दना का, मुझ अज्ञानी को ज्ञान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।

भोले-भण्डारी के दर से, कोई नहीं खाली जाता,
जो धरता है ध्यान आपका, वो इच्छित फल को पाता,
जिससे उपमा हो शिव की, ऐसा कोई उपमान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है

One thought on ““अज्ञानी को ज्ञान नहीं”

  • नूतन गर्ग

    बहुत ख़ूब कहा आपने सर ।
    “भोले भंडारी के घर से कोई नहीं ख़ाली जाता “
    🙏🙏

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