“अज्ञानी को ज्ञान नहीं”
दुर्गम पथरीला पथ है, जिसमें कोई सोपान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।
रहते हैं आराध्य देव, उत्तुंग शैल के शिखरों में,
कैसे दर्शन करूँ आपके, शक्ति नहीं है पैरों में,
चरणामृत मिल जाए मुझे, ऐसा मेरा शुभदान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।
तुम हो जग के कर्ता-हर्ता, शिव-शम्भू कल्याण करो,
उरमन्दिर में पार्वती के साथ, देव तुम चरण धरो,
पूजा और वन्दना का, मुझ अज्ञानी को ज्ञान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।
भोले-भण्डारी के दर से, कोई नहीं खाली जाता,
जो धरता है ध्यान आपका, वो इच्छित फल को पाता,
जिससे उपमा हो शिव की, ऐसा कोई उपमान नहीं।
मैदानों से पर्वत पर, चढ़ना होता आसान नहीं।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बहुत ख़ूब कहा आपने सर ।
“भोले भंडारी के घर से कोई नहीं ख़ाली जाता “
🙏🙏