इंसानियत का सौदा
एक व्यक्ति था जो बहुत ही नेक था। सहयोग और सहानुभूति का मिसाल था। खुद को कष्ट में डालकर तन मन धन से जरूरतमंदो की सेवा करता था। समय बीतता गया लोग उससे जुडते गये और अपनी उल्लू सीधा कर उससे दूर होते गये। तभी उसके जीवन में एक लड़की उसके दोस्त के माध्यम से उसके सम्पर्क में आई। उसने अपनी परेशानियों को उसके साथ साझा किया और मदद की मांग कि। उसका दोस्त भी बोला भाई हमलोगों को इसकी मदद करनी चाहिए। ये तो पहले से ही स्वभाव से मजबूर था सो उसकी मदद के पीछे अपना समय और काम भूल गया और निःस्वार्थ मदद करने लगा। बहुत सारे लोगों के सहारे उसके लिए बहुत कुछ किया। वक्त के साथ वो लड़की भी संभलते चली गई और एक दिन वो एक मनचाहा मंजिल को पा गई। अब वो लड़की धीरे धीरे जमाने के रंग में ढल चुकी थी। वो लड़का ही कभी कभार फोन से उसका हाल समाचार लेता था पर वो लड़की उसे ignore करती थी। इस बात को ये लड़का अपने स्वभाव के चलते कोई नाकारात्मक रूप से नहीं लेता था।
एक दिन वो लड़का किसी दोस्त से बात कर रहा था तभी उसका दोस्त बोला फोन पे यार किसी का फोन आ रहा है तुमको अपनी फोन disconnect करो, तुमसे बाद में बात करता हूँ। इसने बोला o.k., पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था फोन कटा नहीं और उसने अपने दोस्त और उसके उस महिला दोस्त की बात को सुनी तो मानो इस लड़के के पैर से जमीन ही खिसक गई। उसने जब उस लड़की की बातें सुनी जो कि इससे ही संबंधित था जिसमें उसने इसे मूर्ख, गवार, छौकडीबाज और न जाने क्या क्या तोहमत लगाई। वो लड़की कोई और न थी बल्कि वही लड़की थी जिसको उसने जी जान से मदद किया था। उस दिन इस लड़के का सब्र की बांध टूट गई, और टूटता भी क्यों नहीं क्योंकि हर चिज की एक सीमा होती है। अब ये लड़का बदल चुका था। समय ने करवट ली और ये लड़का ने बहुत सारे शोहरत और दौलत कमाई। वो लड़की की जिंदगी में कुछ ऐसी परिस्थिति आई कि उसकी जिंदगी में आफत का तुफान आ गया था पर आज उसकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आया क्योंकि उसके स्वार्थी स्वभाव यानि USE & THROW कीआदत से सभी वाकिफ हो चुके थे।”
नोट- इस कहानी में लेखक ने निष्कर्ष के तौर पे एक बात जरूर कहा कि मेरा इस कहानी का उद्देश्य ये कतई नहीं है कि आदमी आदमी के काम न आए या इंसानियत त्याग दें ब्लिक मदद या सहयोग के पहले उस व्यक्ति के बारे में निश्चित रूप से ठोस और विशवसनीय तौर पे पता लगा लें ताकि आप उससे लड़के की तरह अपने आप को ठगा महसूस न करें। क्योंकि दिल की टूटने की आवाज नहीं होती है मगर उसे दलदली आ जाती है।
— मृदुल शरण