” ———————— चलना है अविराम ” !!
मोह हमारा माटी से है , जीवन इसके नाम !
रूखी सूखी जो मिल जाये , चलना है अविराम !!
हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं , मौसम चाहे जो हो !
काया की परवाह किसे है , अब यहाँ कहाँ विश्राम !!
सीमा पर फौजी भाई है , जान लिए आफत में !
हम किसान खेतों पर जुटते , देश है सेवाधाम !!
डग डग धरती नीर नही अब , पग पग बढ़ती प्यास !
और थकन है लदी पीठ पर , ढलती देर से शाम !!
धरती की माटी चंदन है , इसका तिलक लगाते !
स्वेद कणों में बहे पसीना , मिले ना जी भर दाम !!
नेह के बन्धन सदा अछूते , रखा धरा से नाता !
मिले पेट भर या भूखे हों , करते इसे प्रणाम !!
चाहें ना हम सोना चांदी , मिलता रहे सुपोषण !
आशाएं परवान चढ़े बस , छूऐं नये आयाम !!