चंदा मामा !
माँ से मिलने कब आओगे?
चंदा मामा बोलो तो।
यदि धागा रेशम का उलझा,
आकर गाँठे खोलो तो।।
निःस्वार्थ हृदय तुम दोनों का,
विलग हुए फिर क्यों इतना ?
ताक रहे अन्योन्य नेह से,
कभी वहाँ से डोलो तो।।
सावन पावन लेकर आया,
मिलन भ्रात से बहना का।
माँ कहती आ टीका कर दूँ,
मुख मुरझाया धोलो तो।।
देती है आशीष सदा माँ,
तमस मिटा यूँ ही चमको।
जग-जीवन में शुभ शीतल सी,
रश्मि ‘अधर’ मधु घोलो तो।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’