द्वेष मुक्त हो मानव चेतन, ज्योतिर्मय संसार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
नव ऊर्जा से पोषित मन हो ,काज सकल साकार करें
भाग्य कलश के शेष सिरे को,सत कर्मों से नित्य भरें
जिव्हा से निकली मृदुवाणी,प्राणों का श्रृंगार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
नेह भाव को उर से तज कर , मोह पाश विच्छिन्न किया
क्रोध कपट का ओढ़ आवरण ,निर्मलता को खिन्न किया
ज्ञान कोकिला कूके ऐसे , पावन पंथ पुकार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
मुरझाती जाए नित करुणा,सर्व बदी ही पालित है
अवहेलित होती मर्यादा, नव युग यूँ संचालित है
करूँ निवेदन मानव कुल से ,संवेदित उपचार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
— प्रियंका सिंह