गीत/नवगीत

गीत – कर्मों की हो ऐसी श्रेणी

द्वेष मुक्त हो मानव चेतन, ज्योतिर्मय संसार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
नव ऊर्जा से पोषित मन हो ,काज सकल साकार करें
भाग्य कलश के शेष सिरे को,सत कर्मों से नित्य भरें
जिव्हा से निकली मृदुवाणी,प्राणों का श्रृंगार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
नेह भाव को उर से तज कर , मोह पाश विच्छिन्न किया
क्रोध कपट का ओढ़ आवरण ,निर्मलता को खिन्न किया
ज्ञान कोकिला कूके ऐसे , पावन पंथ पुकार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
मुरझाती जाए नित करुणा,सर्व बदी ही पालित है
अवहेलित होती मर्यादा, नव युग यूँ संचालित है
करूँ निवेदन मानव कुल से ,संवेदित उपचार बने
कर्मों की हो ऐसी श्रेणी, जो जीवन आधार बने
प्रियंका सिंह

प्रियंका सिंह

जन्म - २१ मई १९९३ , कोलकाता में शिक्षा - बी ए हिंदी ऑनर्स (कलकत्ता विश्वविद्यालय से २०१३) पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा "अनुवादक" (इग्नू से २०१५) व एम ए हिंदी ( इग्नू से २०१८)में। आगे पी. एच. डी. की इच्छा। मैं बचपन से ही एक खुली विचारधारा की रही हूँ। बचपन से ही मेरी गायन-अभिनय व लेखन में विशेष अभिरुचि रही है, जिस वजह से विद्यालय और यूनिवर्सिटी स्तर पर हमेशा ही अपना योगदान देती रही, जिसके फलस्वरूप इस स्तर पर कई बार सम्मानित भी की गई। मेरा बचपन कलकत्ता में ही गुज़रा और वहीं से स्नातक तक कि पढ़ाई की , आगे की पढ़ाई शादी के बाद राँची (झारखंड) से पूरी हुई । लेखन की कला में मेरी कलम बिलकुल ही नई है, विधाओं की समझ अब आने लगी है, अभी तक छंद मुक्त पर विशेष ध्यान था। मुझे हिंदी के छंद में गीतिका व ग़ज़ल कहना पसंद है,| अभी सीखने की उम्र है उत्तमता व उत्कृष्टता हेतु निरन्तर कुछ न कुछ लिख ही रहीं हूँ। रोज कुछ न कुछ नया सीख रहीं हूँ। देशहित के लिए जिस प्रकार सब अपने सामर्थ्य अनुरूप योगदान देते है उसी प्रकार मैं अपनी लेखनी द्वारा ध्वस्त होती संवेदनाओं की भावभूमि पर सकारात्मक विचारों का पुनः नव बीजारोपण कर सकूँ इसके लिए सदैव प्रयत्नशील रहती हूं ।