गीत/नवगीत

गीत- पल रही यदि कोख में कन्या

हिय से निकली एक अरज है,हिय से ही स्वीकार करो
पल रही यदि कोख में कन्या,मत कुंठित व्यवहार करो
ईश्वर के आशीष रूप में, माँ  जनमे है जाई को
हाथों में ले राखी रोली , बहना मिलती भाई को
बिन बेटी जग कैसा होगा,थम कर तनिक विचार करो
पल रही यदि कोख में कन्या,मत कुंठित व्यवहार करो
बिटिया की किलकारी जैसे , मधुरिम गूंजे शहनाई
अवतरित होती ये धरा पर ,देवी की बन परछाई
युग संचालन की सहभागी , पर मत अत्याचार  करो
पल रही यदि कोख में कन्या,मत कुंठित व्यवहार करो
जिनसे कथित समाज बना है, नियमों को वे गढ़ते है
बिटिया बोझा बाबुल सिर की, सोच सभी पर मढ़ते है
हीन दशा से पीड़ित जग है, सब मिलकर उपचार करो
पल रही यदि कोख में कन्या,मत कुंठित व्यवहार करो
प्रियंका सिंह

प्रियंका सिंह

जन्म - २१ मई १९९३ , कोलकाता में शिक्षा - बी ए हिंदी ऑनर्स (कलकत्ता विश्वविद्यालय से २०१३) पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा "अनुवादक" (इग्नू से २०१५) व एम ए हिंदी ( इग्नू से २०१८)में। आगे पी. एच. डी. की इच्छा। मैं बचपन से ही एक खुली विचारधारा की रही हूँ। बचपन से ही मेरी गायन-अभिनय व लेखन में विशेष अभिरुचि रही है, जिस वजह से विद्यालय और यूनिवर्सिटी स्तर पर हमेशा ही अपना योगदान देती रही, जिसके फलस्वरूप इस स्तर पर कई बार सम्मानित भी की गई। मेरा बचपन कलकत्ता में ही गुज़रा और वहीं से स्नातक तक कि पढ़ाई की , आगे की पढ़ाई शादी के बाद राँची (झारखंड) से पूरी हुई । लेखन की कला में मेरी कलम बिलकुल ही नई है, विधाओं की समझ अब आने लगी है, अभी तक छंद मुक्त पर विशेष ध्यान था। मुझे हिंदी के छंद में गीतिका व ग़ज़ल कहना पसंद है,| अभी सीखने की उम्र है उत्तमता व उत्कृष्टता हेतु निरन्तर कुछ न कुछ लिख ही रहीं हूँ। रोज कुछ न कुछ नया सीख रहीं हूँ। देशहित के लिए जिस प्रकार सब अपने सामर्थ्य अनुरूप योगदान देते है उसी प्रकार मैं अपनी लेखनी द्वारा ध्वस्त होती संवेदनाओं की भावभूमि पर सकारात्मक विचारों का पुनः नव बीजारोपण कर सकूँ इसके लिए सदैव प्रयत्नशील रहती हूं ।