मेरे कृष्णा
एहसास हैं तुझसे,
लफ़्ज़ों के जाल हैं तेरे
रूह मेरी महकी है नाम से तेरे
हमदम कहूँ या कह दूँ हमसाया तुझे
या कोई मेरा ही अधूरा हिस्सा है तू
भूल के तुझे मै, सिर्फ ज़िस्म रह जाती हूँ
रूह तो तुझे खोजने में ही कहीं खो जाती है
ज़िन्दगी की मसरूफ़ियत कहीं भुला न दे नाम तेरा
इस लिए इन साँसों की डोर से बाँध लिया है तुझे
साँसें है जब तक ज़िस्म में, निभा लूँ मै
टूट जाये जब साँसों की डोर,
तब तू भूल ना जाना मुझे…
— सुमन “रूहानी”