एक इंच मुस्कान
एक इंच मुस्कान मिल जाती है डेली ,
ख्यालों में यूँ ही तुम्हे सोचते हुए ,
साथ जीने के लम्हे बुनते हुए ।
धड़कनों में गीत सुनते हुए ,
सिर्फ तुम्हें ही सोचा है आँसुओं में मुस्कारते हुए ……
ऐसा ही होता है यूँ ही बात करते हुए ,
जाने कब आ जाते हो आंखों में लरजते हुए
सोचती हूँ भूल गयी हूँ तुम्हें
पथरीले रास्तों पर चलते हुए ,
लेकिन चुभ जाता है कोई कांटा ,
सहसा याद आ ही जाते हो ,
मेरी तन्हाई में रंग भरते हुए ।
आह में भी वाह ढूंढ ही लेते हो ,
कहाँ से सीखा है युगों को वो
एक क्षण बना लेने की कला ।
बेबफाई भी दिल से किया करो ,
अच्छे नहीं लगते यूँ झूठी मुस्कान ओढे हुए
चलो फिर से मुस्कराओ न खुलकर …..
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़