धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

छज्जू का चौबारा – “एक तरफ़ हो जाओ!” 

लाहौर में एक चौबारा था। उसका नाम था ‘छज्जू का चौबारा’। पंजाबी जीवन शैली में लोकोक्ति चर्चित है-‘जो सुख छज्जू दे चौबारे, न बलख न बुखारे’ अर्थात छज्जू के चौबारे का सुख के आगे बल्क व बुखारे का सुख भी फीका पड़ जाता है। छज्जू भगत का असली नाम छज्जू भाटिया था। वे लाहौर के रहने वाले थे। मुगल बादशाह जहांगीर के समय वे सोने का व्यापार किया करते थे। 1640 में उनके निधन के बाद उनके अनुयायियों ने लाहौर के पुरानी अनारकली स्थिति डेरे में उनकी समाधि बना दी। इसके बाद जब भंग मिसल के सरदारों का वक्त आया तो उनकी दुकान और विशाल डेरे की जगह पर मंदिर व धर्मशाला बनवाई गई। इस समग्र निर्माण को नाम मिला छज्जू का चौबारा। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासन काल में यहां पर यात्रियों के लिए नए कमरे, तालाब और सुंदर बागीचे बनवाकर उसकी शोभा में चार चांद लगा दिए। छज्जू भगत की कहानी भी बेमिसाल है। वे व्यापारी थे। उनका व्यापार में मन अधिक नहीं लगता था। वैराग्य प्रवृति के थे। एक दिन गली में से जा रहे थे। मेहतर गली साफ़ करती हुई चलने वालों से कह रही थी “एक तरफ़ हो जाओ!” उसका कहना ठीक था। अन्यथा कूड़े में पैर पड़ जायेगा। उसकी बात सुनकर छज्जू को आत्मबोध हुआ। एक वैराग्यवान के लिए व्यापार और ईश्वर भक्ति एक साथ नहीं चल सकती। उसने अपना कारोबार बेटों को सौपा और चौबारे पर बैठकर भक्ति करने लग गया। दूर दूर से लोग उसके सत्संग में आने लगे। उसका चौबारा पूरे लाहौर में प्रसिद्द हो गया। इसका मुख्य कारण एक ही था। छज्जू सांसारिक मोह त्याग कर एक तरफ़ हो गया था। सांसारिक मोह के चक्कर में फँस कर वह अपनी आत्मा के साथ न्याय नहीं कर पा रहा था।
आज भी छज्जू के यह जीवन सन्देश हम आर्यों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण हैं। जितना उस काल में था। जाने कैसे-
स्वामी अग्निवेश जी पर हमला हुआ। सोशल मीडिया में  समाज के सदस्य दो भागों में विभाजित होकर उनके पक्ष और विरोध में बोल रहे हैं। उनके पक्ष में बोलने वाले तीन प्रकार के है। पहले वो जो आर्यसमाज के उस गुट से सम्बंधित है, जिसका सञ्चालन स्वामी अग्निवेश जी करते है। दूसरे जो कांग्रेस समर्थक है। जो स्वामी अग्निवेश का साथ इसलिए दे रहे है क्यूंकि वे मोदी जी के विरोधी है। तीसरे वो जिन्हें आप तवलीन सिंह, कुलदीप नैय्यर, वाल्सन थम्पू, अरुंधति रॉय आदि साम्यवादी मानसिकता वाले के नाम से जानते हैं। इसी प्रकार से स्वामी अग्निवेश का विरोध करने वाले भी तीन प्रकार के है।  पहले आर्यसमाज के वो सदस्य जो उनके विपरीत गुट से सम्बंधित हैं। दूसरे वो जो मोदी जी के समर्थक है। तीसरे वो जो स्वामी अग्निवेश का साथ देने वाले नक्सल समर्थक, साम्यवादी विचारों के घोर आलोचक हैं।
हम इन 6 में एक भी प्रकार के नहीं हैं। क्यूंकि हम स्वामी दयानन्द के शिष्य है। देश, धर्म और राष्ट्रवादी राजनीती का वेदों के अनुरूप प्रचार का विचार स्वामी दयानन्द का दिया हुआ चिंतन था। आर्यसमाज ने अपने वैदिक सिद्धांतों को राष्ट्रीय राजनीति में दलगत राजनीती से ऊपर उठकर लागु करवाना था। उसके स्थान पर हम राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के मध्य हम फूटबाल बन गए। क्यूंकि हमारे तथाकथित नेता कभी इस ओर तो कभी दूसरी ओर झुक जाते हैं। इसलिए कम शब्दों में एक ही बात कहूंगा। दयानन्द पथ के अनुगामी बने। उक्त परिस्थितियों में हम एक दूसरे के प्रति वैर,द्वेष,क्रोध आदि न करे। जीवन के लक्ष्य को पहचाने। हमें यह तय करना है कि क्या हमें इसी दलदल में फंसना है अथवा “एक तरफ़ हो जाना है!”
डॉ विवेक आर्य