बरसात
जीने का सबब जगाती है ये बरसात ,
बिन मौसम के भी आ जाती है बरसात ।
कहीं पर लगते हैं खुशियों के मेले ,
कहीं पर आंसूं दे जाती है बरसात ।
थम रही है कहीं पर जिंदगी की चाल
कहीं पर आग लगा जाती है बरसात ।
सजते थे कभी हर पल इंद्रधनुष के रंग
आज तबाही मचा जाती है बरसात ।
वो देखो हाथ जोड़कर इसरार कर रहा किसान ,
उम्मीदों पर पहरे लगा जाती है बरसात ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़