मोहब्बत
बैरन धूप और रक्त की छांव पर गुरूर क्या करना ,
तन्हाई के सबब को यूँ सरेआम बयान क्या करना ।
कशिश ऐ इश्क़ गैरों के सामने फरमान साबित हुआ
अपनों की बेबफाई का पल पल गिला क्या करना ।
रंजिश थी तक़दीर को मोहब्बत की आजमाइश से
दर्द ऐ दिल का हर शख्स से नवाजिश क्या करना ।
गुजर जाएगी जिंदगी यूँ ही इश्क़ की इबादत में
नफरतों को दिल में सहेजकर ऐ दिल क्या करना ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़