लघुकथा : ममता की छाँव तले
अपने दुधमुही एक दिन नवजात शिशु को छोड़ मीरा चल बसी | बच्ची को तो अपनी माँ का दूध भी नसीब न हुआ | अपनी पत्नी की असमय मौत बिल्कुल टूट चुका चुका रामू | उसने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि जिंदगी उसके साथ इतना बड़ा मजाक करेगी | मीरा और रामू काफी सालों से निःसंतान थे और मीरा के गर्भवती होने की ख़बर से रामु और उसका पूरा परिवार बहुत ही खुश था | काफी धूम – धाम से मीरा की ‘गोद भराय ‘ की रस्म हुई | चूँकि को कई सालों बाद मीरा को बच्चा हो रहा था उसके डिलीवरी में कई परेशानियां थी | बच्चे को जन्म देने के बाद रामु का चिंतित चेहरा देखकर मीरा ने अपनी ननद तुलसी से पूछा ‘ दीदी बच्ची ठीक तो है न मुझे एक बार उसका चेहरा तो दिखा दो ‘| अपनी फूल सी कोमल बच्ची का चेहरा काफी खुश हुई थी मीरा | लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था | बच्ची जन्म देने के एक दिन बाद ही मीरा की मौत हो गई | अब रामूऔर उसके परिवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि इस एक दिन की बिन माँ की बच्ची को कैसे पाला जाए , जिसने अपनी माँ का दूध मुंह भी न लगाया हो | रुई की बतियाँ बनाकर उसे दूध डुबोकर दूध पीलाया करती थी रामू की माँ लक्ष्मी देवी | सत्तर साल की उम्र में उन्हें दोबारा से अपनी बहू गुज़र जाने के कारण माँ का फर्ज निभाना पड़ा | रात – रात भर जाग कर बच्ची का ख्याल रखती थी लक्ष्मी देवी |धीरे – धीरे बच्ची बड़ी होने लगी रामू की भी दूसरी शादी कर दी गई | घर में नई बहू आई उसे अपनी लाडली पोती से परायेपन का व्यवहार न करने की खास हिदायत दी लक्ष्मी देवी ने ,और कभी भी रामु की बच्ची को ये ऐहसास नहीं होने दिया की वह बिन माँ की बच्ची है | माँ के उसने सारे फर्ज निभाए और बड़ी होने पर एक अच्छा घर परिवार देखकर एक सुन्दर नौकरी पेशा युवक से शादी कर दी | लक्ष्मी देवी की ममता के छांव तले आज वही बच्ची माँ बनने की राह में चल पड़ी |
— विनीता चैल