दोहे – गुरु महिमा
गुरु सत चित आनंद है , अविचल और अपार |
संशय मिट जाते सभी , हो भव सागर पार ||
गुरु के अमित प्रकाश से , मिटे सकल अज्ञान |
कलुष तमस मन का छटे, मानव बने सुजान ||
गुरु वह मधुर मृदंग है , बजे अनाहद नाद |
जिसने तनमय हो सुना , उससे दूर प्रमाद ||
गुरु का अनुपम ज्ञान ही , सदा जगाता भाग |
भय के भागे भूत सब , मिले सदा अनुराग ||
गुरु प्रसाद भगवान का , ईश्वर का प्रतिरूप |
जिसने इसको चख लिया ,चमका उसका रूप ||
रोम – रोम पुलकित करे , गुरु ऐसा मकरंद |
मनहर मोहन बाँसुरी , बरसाये आनंद ||
हे गुरुवर कर दो कृपा , मिटे सकल अज्ञान |
ज्ञान ज्योति उर में जले , भर दो वह सद्ज्ञान ||
गुरु के तप और ज्ञान से , हो विकार का नाश |
गुरु की महिमा है प्रबल , गुरु आशा विश्वास ||
उठना चलना बोलना , बहुत सिखाये काम |
पहली गुरु माता मेरी , तुमको करूँ प्रणाम ||
— मंजूषा श्रीवास्तव