मर रही इंसानियत आजकल
खाली पड़ा है मय का प्याला आजकल।
ऐसा लगता है इसका भी मय से नाता टूट गया है।।
आसमाँ में उजाले की कुछ कमी सी है आजकल।
ऐसा लगता है कुछ सितारों का अपनो से साथ छूट गया है।।
आँखे देखियेएगा हँसने वालो की गौर से,वो भी लाल है आजकल।
ऐसा लगता है जैसे उनकी आँखो से आँशुओ का साथ छूट गया है।।
मंदिर में भी लोगो की भीड़ बहुत लगी है आजकल।
ऐसा लगता है जैसे इंसान का इंसान से विश्वास छूट गया है।।
माँ जैसा किसी को कहने वाले कहीं गायब है आजकल।
ऐसा लगता है जैसे अब उस माँ की रूह का शरीर से साथ छूट गया है।।
चंद रुपयों की नुमाइश करते है सफेदपोश लोग आजकल।
ऐसा लगता है जैसे इंसान से अब इंसानियत का साथ छूट गया है।।
बहुत मगरूर हो गए है कुछ शरीफ गिरगिट जैसे लोग आजकल।
ऐसा लगता है जैसे उन्हें ये नही पता कि सिकंदर भी अपनी जान से छूट गया है।।
— नीरज त्यागी