अरुणाचली जनजातियों की मृत्यु विषयक अवधारणा
अरुणाचल प्रदेश अपने नैसर्गिक सौंदर्य,सदाबहार घाटियों, वनाच्छादित पर्वतों, बहुरंगी संस्कृति, समृद्ध विरासत, बहुजातीय समाज, भाषायी वैविध्य एवं नयनाभिराम वन्य-प्राणियों के कारण देश में विशिष्टय स्थान रखता है । अनेक नदियों एवं झरनों से अभिसिंचित अरुणाचल की सुरम्य भूमि में भगवान भाष्कर सर्वप्रथम अपनी रश्मि विकीर्ण करते हैं, इसलिए इसे उगते हुए सूर्य की भूमि का अभिधान दिया गया है । इसके पश्चिम में भूटान और तिब्बत, उत्तर तथा उत्तर – पूर्व में चीन, पूर्व एवं दक्षिण – पूर्व में म्यांमार और दक्षिण में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी स्थित है I पहले यह उत्तर – पूर्व सीमांत एजेंसी अर्थात नेफा के नाम से जाना जाता था I 21 जनवरी 1972 को इसे केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया I इसके बाद 20 फ़रवरी 1987 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया I प्रदेश में निम्नलिखित जनजातियाँ निवास करती हैं : आदी, न्यिशी, आपातानी, हिल मीरी, तागिन, सुलुंग, मोम्पा, खाम्ती, शेरदुक्पेन, सिंहफ़ो, मेम्बा, खम्बा, नोक्ते, वांचो, तांगसा, मिश्मी, बुगुन (खोवा ), आका, मिजी I अरुणाचल प्रदेश की विभिन्न जनजातियों में मृत्यु और अंत्येष्टि संस्कार के संबंध में अनेक विधि- निषेधों का पालन किया जाता है I अरुणाचल की जनजातियों की मान्यताओं और अवधारणाओं में भिन्नता है, अंत्येष्टि संस्कार से संबंधित रीति-रिवाजों तथा लोकाचारों में भी अंतर है परंतु एक तथ्य सभी समुदायों में समान है कि सभी जनजातियां आत्मा, स्वर्ग- नरक, अच्छी और बुरी शक्तियों की अवधारणा में विश्वास करती हैं I शव को जलाने और दफनाने की दोनों विधियां प्रचलित हैं I प्रायः सभी जनजातियों में मृत्यु के बाद पशुओं की बलि देने की परंपरा है I तिरप जिले के नोक्ते समुदाय के लोग सर्वोच्च ईश्वरीय शक्ति में निष्ठा रखते हैं जिसे ‘जौबन’ अथवा ‘तेसोंग’ कहा जाता है I आत्मा और विभिन्न प्रकार की दैवी शक्तियों के प्रति भी वे लोग आस्थावान हैं I वृद्धावस्था या लंबी बीमारी के बाद हुई मृत्यु को ईश्वर (जौबन) की इच्छा माना जाता है I असामयिक मृत्यु का कारण दुष्ट शक्ति (जोक) को माना जाता है I गर्भवती महिलाओं की मृत्यु को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है I मृत्यु के उपरांत शव को तुरंत नहीं दफनाया जाता, उसे एक दिन से लेकर सात दिनों तक रखा जाता है I गांव के चीफ के मरने पर उनके शव को एक महीने तक रखा जाता है I इस अवधि में उनके सगे- संबंधी और मित्र उनके अंतिम दर्शन करते हैं तथा मृतक के सम्मान में अन्न आदि भेंट करते हैं I चीफ के मरने पर उसके क्षेत्राधिकार के सभी गांवों के निवासी एकत्रित होकर नाचते – गाते और खाते – पीते हैं I यह शोक समारोह नहीं बल्कि उत्सव जैसा लगता है I इस समारोह में मदिरा पीना -पिलाना अनिवार्य है I इस अवसर पर पशुओं की बलि दी जाती है और सभी लोग बलिपशु का मांस खाते हैं I नोक्ते समाज में अंत्येष्टि से संबंधित अनेक विधियां प्रचलित हैं I शव को जलाने और दफनाने की दोनों विधियां प्रचलित हैं I गांव की परंपरा तथा मृत्यु की दशा के अनुसार अंत्येष्टि की विधियां निर्धारित होती है I कुछ गांव में आकस्मिक मृत्यु होने पर शव को जला दिया जाता है एवं स्वाभाविक मृत्यु होने पर शव को जमीन में दफना दिया जाता है I नोक्ते जनजाति के कुछ गांवों में अंतिम संस्कार की एक विशेष विधि भी प्रचलित है I इस विधि में मृतक के शव को बांस के मचान पर खुला रख दिया जाता है अथवा उसे पेड़ पर लटका दिया जाता है I
वांचो जनजाति के लोग भी बुढ़ापे अथवा लंबी बीमारी के उपरांत हुई मृत्यु को स्वाभाविक मृत्यु अथवा ईश्वर की इच्छा समझते हैं लेकिन आकस्मिक मृत्यु को ‘बऊ रंग’ नामक दुष्ट शक्ति की कार्रवाई मानते हैं I वे लोग मृत्यु के बाद 24 घंटे तक शव को घर में रखते हैं I इस बीच उनके परिजन और मित्रगण आकर उनके अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं I चीफ के शव को लकड़ी के बक्से में रखा जाता है जबकि जनसामान्य के शव को चटाई अथवा कपड़े में लपेट दिया जाता है I मृतक के संबंधी, मित्र, सभी ग्रामवासी स्त्री – पुरुष अंत्येष्टि स्थल पर जाते हैं I शव को जमीन से 5 फीट ऊपर एक चबूतरे पर रखा जाता है I चबूतरे के ऊपर छोटा -सा छप्पड़ मनाया जाता है I लकड़ी या बांस से मृतक का पुतला बनाया जाता है और उसे खंबे के सहारे लटका दिया जाता है I एक पशु की बलि दी जाती है I परिवार के सदस्य मृत आत्मा को प्रतिदिन भोज्य पदार्थ अर्पित करते हैं I एक माह के बाद शोधन संस्कार संपन्न किया जाता है I तब तक शव में केवल हड्डी बची रह जाती है I शोधन संस्कार के दिन शव के सिर को धड़ से अलग किया जाता है और सावधानीपूर्वक साफ कर उसे लाल कपड़े में लपेट दिया जाता है I उस दिन सभी ग्रामवासी एकत्रित होते हैं I अनेक लोग मछली मारने के लिए जाते हैं I मछली और चावल तैयार किया जाता है एवं मृत आत्मा को अर्पित किया जाता है I जिस दिन सर को धड़ से अलग करने की क्रिया संपन्न होती है उस दिन एक उत्सव मनाया जाता है जिसे ‘रापोलो अथवा जा फोएतले’ कहा जाता है I प्रत्येक वर्ष ‘पोएतकेले’ त्यौहार मनाया जाता है I इस त्यौहार के दिन परिवार के सभी मृतकों की खोपड़ी घर के बाहर लाकर रखा जाता है तथा उसे मदिरा और अन्न अर्पित किया जाता है I सिंहफो जनजाति में शव को जलाने और दफनाने की दो विधियां प्रचलित हैं I दफनाने के लिए शव को लकड़ी के बक्से में डाला जाता है I जलाने के लिए एक विशेष प्रकार की चिता बनाई जाती है I सर्वप्रथम परिवार के मुखिया द्वारा चिता में आग लगाई जाती है I किसी दुर्घटना में मृत व्यक्ति के शव को नहीं जलाया जाता है, उसे गांव के बाहर जमीन में दफना दिया जाता है I नवजात शिशु की मृत्यु को दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है एवं उसके शव को अधजला कर गांव के बाहर किसी वृक्ष के नीचे दफना दिया जाता है I सिंहफो समुदाय शव के साथ कब्र में कोई वस्तु नहीं गाड़ता है I कब्र के निकट बांस में सफेद कपड़े का टुकड़ा लटका देते हैं I मृत्यु के बाद वे लोग किसी प्रकार के निषेधों का पालन नहीं करते हैं I मृत्यु के सात दिनों के उपरांत एक भोज का आयोजन किया जाता है I लोगों का विश्वास है कि उस दिन प्रेतआत्मा अपने पुराने घर में भोजन ग्रहण करने आती है I प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों प्रकार की मृत्यु में मृतात्मा को भोज्य पदार्थ अर्पित करने का नियम है I मृतक की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए बौद्ध पुजारी आकर अंत्येष्टि संस्कार संपन्न कराता है I बौद्ध पुजारी मृतक के व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएं जैसे, छाता, बर्तन, कपडे आदि ले लेता है और उन वस्तुओं को स्थानीय बौद्ध मठ के उपयोग के लिए रख देता है I गांव के चीफ की मृत्यु के बाद एक विशेष प्रकार का समारोह आयोजित किया जाता है जिसे ‘मोंगलय’ कहा जाता है I प्रतिदिन मृतक की आत्मा को भोजन अर्पित किया जाता है I सूअर, भैंस आदि जानवरों की बलि दी जाती है तथा लोग शव के निकट नाचते – गाते हैं I सामूहिक भोज में सगे – संबंधी और गांववासी शामिल होते हैं I यह समारोह महीने भर चलता है I समारोह के अंतिम दिन शव को दफना दिया जाता है I
न्यिशी जनजाति के लोग सामान्य और असामान्य मृत्यु को अपने पारंपरिक नजरिए से पारिभाषित करते हैं I वृद्धावस्था की मृत्यु को सामान्य मृत्यु माना जाता है I ऐसी मृत्यु के संबंध में धारणा है कि मानव की जीवनी शक्ति (लोचांग) के समाप्त हो जाने के कारण वृद्धावस्था की मृत्यु होती है I इसे ईश्वर की ईच्छा माना जाता है I यौवनावस्था अथवा दुर्घटना के कारण हुई मृत्यु को असामान्य मृत्यु माना जाता है I इसका कारण ‘वियू’ अथवा ‘ओरम’ नामक दुष्ट आत्मा को माना जाता है I इनके पारंपरिक विश्वासों के अनुसार मृत्यु की प्रत्येक घटना का कोई न कोई कारण अवश्य होता है I इनका विश्वास है कि जब बच्चा माता के गर्भ में रहता है उसी समय उसकी मृत्यु निर्धारित हो जाती है I न्यिशी लोग शव को अपने घर के निकट दफना देते हैं I मृत आत्मा की अंतिम यात्रा के लिए शव के साथ कुछ वस्तुओं को कब्र में गाड़ने का रिवाज है I इनकी कब्र निर्माण प्रक्रिया अत्यंत सुव्यवस्थित है I कब्र के निकट बांस के गुंबज बनाए जाते हैं तथा उसे पत्तियों, बांस के छीलन एवं बलि पशु के सींगों से सजाया जाता है I धनी व्यक्ति की मृत्यु होने पर अनेक मिथुन और सूअरों की बलि दी जाती है लेकिन गरीब व्यक्तियों की मृत्यु होने पर एकाध छोटे जानवरों की बलि देकर संस्कार संपन्न कर दिया जाता है I किसी की मृत्यु होने पर सभी लोग एकत्रित होकर मृतक के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं I इन लोगों की धारणा है कि बलिपशु आत्मा के साथ ही स्वर्ग में जाते हैं I निशि लोगों का विश्वास है कि मृत्यु के बाद आत्मा (ओरम) ‘नेली न्योका’ में चली जाती है I मृतकों की दुनिया मिली ‘नेली न्योका’ के नाम से जानी जाती है I यह पृथ्वी के नीचे किसी स्थान पर अवस्थित है I वहां का जीवन भी पार्थिव जगत के समान है I ‘ओरम’ उस भीतरी संसार में सहज जीवन व्यतीत करता है, खेती करता है एवं अपने परिवार के साथ रहता है I ‘ओरम’ अथवा आत्मा की एक बार पुनः मृत्यु होती है I मृत्यु के बाद वह ‘ओरम क्युलु’ में चली जाती है I कभी-कभी आत्मा जीव -जंतुओं का रूप धारण कर संसार का भ्रमण करने के लिए आती है I धार्मिक दृष्टि से तागिन समाज प्रकृतिपूजक है I तागिन समुदाय का विश्वास है कि यह संसार ‘वियु’ से भरा हुआ है I ‘वियु’ की कुदृष्टि से ही असामयिक मृत्यु, रोग, गरीबी आदि का प्रकोप होता है I ऐसी मान्यता है कि ‘वियु’ को चढ़ावा नहीं चढ़ाने से वह नाराज हो जाती है तथा बीमारी और मृत्यु के रूप में अपना रोष प्रकट करती है I पर्वत शिखर से गिरकर अथवा डूबकर होनेवाली मृत्यु को भी ‘वियु’ के क्रोध का दुष्प्रभाव माना जाता है I ‘वियु’ उस समय भी नाराज हो जाती है जब जंगल में काम करते समय कोई व्यक्ति उसके निवास स्थल के साथ छेड़छाड़ करता है अथवा कोई व्यक्ति समाज के परंपरागत नियमों का उल्लंघन करता है I अलग-अलग दुखों के लिए अलग-अलग प्रकार की ‘वियु’ को उत्तरदायी माना जाता है I उसे प्रसन्न करने की विधियों में भी अंतर है I कुछ दुष्ट शक्तियां सूअर की बलि पाकर संतुष्ट होती हैं जबकि कुछ को मिथुन की बलि देनी पड़ती है I ‘वियु’ मनुष्य के दैनिक कार्यों को प्रभावित और नियंत्रित करती है I तागिन जनजाति के लोग आत्मा को ‘यलो’ के नाम से जानते हैं I वेलोग मृत्यु के बाद दो दिनों तक शव को रखते हैं ताकि उनके सगे-संबंधी उनके अंतिम दर्शन कर सकें I उसके बाद शव को दफना दिया जाता है I शव के साथ कब्र में कुछ दैनिक उपभोग की वस्तुएं रखने की परंपरा है I इस समाज में एक अनोखी परंपरा पायी जाती है I ऐसी मान्यता है कि बौद्धिक दृष्टि से मनुष्य का निकटतम जीव बंदर है और अंतिम यात्रा में वह मनुष्य का सर्वोत्तम सहयात्री साबित हो सकता है I इसलिए बंदर को मारकर शव के साथ दफनाने का रिवाज है I शव को कपड़े और पत्तों से ढकने के बाद उस पर मिट्टी डाली जाती है I मृतक का परिवार दस दिनों तक कुछ निषेधों का पालन करता है I
अपनी पड़ोसी जनजातियों की तरह अपातानी लोगों का भी ‘वियु’ में अटूट विश्वास है I इनकी धारणा है कि संसार के सभी पदार्थ ‘वियु’ के द्वारा नियंत्रित और संचालित होते हैं I अपातानी समाज में ‘वियु’ जगत तीन वर्गों में विभक्त है – मानव को हानि पहुंचाने वाले ‘वियु’, युद्ध और कलह देनेवाले ‘वियु’ तथा सुख-समृद्धि देने वाले ‘वियु’ I यदि मनुष्य ‘वियु’ से अच्छा संबंध नहीं रखता है और यथासमय मिथुन, गाय, सूअर आदि जानवरों की बलि देकर पूजा-आराधना नहीं करता है तो ‘वियु’ मनुष्य को रोग, शोक और कष्ट देती हैं I अपातानी समुदाय शव को दफनाते हैं I धनी व्यक्तियों के शव को घर के निकट ही दफना दिया जाता है एवं गाय, मिथुन आदि जानवरों की बलि दी जाती है I दफनाने के पूर्व शव को कपड़े में लपेट दिया जाता है I कब्र के निकट मृतक के सम्मान में एक बांस खड़ा कर दिया जाता है एवं उस बांस में बलिपशु की खोपड़ी लटका दी जाती है I मृत्यु के बाद परिवार के लोग कुछ दिनों तक कुछ विशिष्ट निषेधों का पालन करते हैं I आत्मा के अस्तित्व में अपातानी समाज की प्रबल आस्था है I मृत्यु के उपरांत आत्मा (यलो) मृतकों के संसार में चली जाती है I मृतकों के संसार को ‘नेल्ली’ कहा जाता है I नेल्ली का जीवन भी पार्थिव जगत के समान है I मृत्यु होने के बाद महिला अपने प्रथम पति के साथ ‘नेल्ली’ में दांपत्य जीवन व्यतीत करती है I ऐसी मान्यता है कि अविवाहित पुरुष ‘नेल्ली’ में जाने के बाद शादी भी कर सकता है I अपातानी लोगों की धारणा है कि जिन लोगों की असामयिक मृत्यु होती है उनकी आत्मा एक दूसरी दुनिया में जाती है जिसे ‘तालिमोको’ कहा जाता है I यह आकाश में किसी स्थान पर स्थित है I इन लोगों की मान्यता है कि ‘नेल्ली’ में केवल मृतक लोग ही नहीं रहते बल्कि वहां भूत-प्रेतों का भी निवास है I हिलमीरी जनजाति की मृत्यु संबंधी अवधारणा भी न्यिशी, तागिन, अपातानी इत्यादि जनजातियों के समान है I इनकी मान्यता है कि मृत्यु हमेशा किसी दुष्ट व्यक्ति के प्रकोप के कारण होती है I मृत्यु के बाद आत्मा या ‘यलो’ को दुष्ट शक्तियां अपने साथ ले जाती है और कुछ दिनों तक अपने साथ रखती हैं I इस जनजाति की आस्था मृतकों के संसार में भी है I मृतक जगत को ‘नेली’ के नाम से जाना जाता है I हिलमीरी जनजाति के लोग मरनेवाले व्यक्ति के हाथ पर एक अंडा रख देते हैं ताकि मरणासन्न व्यक्ति की अंतिम यात्रा निरापद हो सके I मृत्यु के बाद मिथुन की बलि दी जाती है I पुजारी मृत आत्मा की सुख- शांति के लिए पारंपरिक विधि से कुछ संस्कार संपन्न कराता है I वेलोग मृत्यु के बाद एक दिन तक शव को रखते हैं, दूसरे दिन उसको घर के निकट दफन करते हैं I शव के साथ कब्र में खाद्य पदार्थ, मदिरा और मृतक की व्यक्तिगत चीजें रखी जाती हैं I कब्र में जहां पर मृतक की छाती रहती है उसके ऊपर एक पत्थर रख दिया जाता है I ऐसी मान्यता है कि पत्थर रखने से कब्र के निकट भूत -प्रेत नहीं आएंगे I कब्र के चारों ओर बाड़ लगा दी जाती है I शव को दफन करने के उपरांत सभी लोग नदी या झरने में स्नान करते हैं I इसके बाद वे लोग दो समूहों में विभक्त हो जाते हैं – एक समूह में मृतक के परिवार के सदस्य होते हैं तथा दूसरे समूह में ग्रामवासी I इसके बाद पुजारी (नीबो) बारी -बारी से दोनों समूहों की ओर से मुर्गे की बलि देता है I इसके बाद पुजारी एक अंडे को पानी में मिलाकर बांस के पत्ते से शव यात्रा में शामिल लोगों के शरीर पर छिड़कता है I
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