प्रेम के गलियारे
क्यों भटकते हो
घृणा के और वैर के
गलियों और चौबारों में?
घूमना है तो घूमो
प्रेम के गलियारों में
भले ही लगते हों छोटे
प्रेम के गलियारे
यहां मिलेंगे
प्रेम के भंडार
आनंद के अंबार
स्नेह के ख़ज़ाने
अपनेपन के नज़राने
खुशियों की खुराक
मन का गुलशन
हो जाएगा बाग-बाग,
मन का गुलशन
हो जाएगा बाग-बाग,
मन का गुलशन
हो जाएगा बाग-बाग.
लीला बहन , घिरणा और वैर विरोध आज बहुत बढ़ गिया है .इस का फायदा कोई नहीं ,बस नुकसान ही नुक्सान हैं . थोडा सा सोच कर चलें और पियार भावना से रहें तो सभ तरफ दुनीया भली नज़र आएगी .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको ब्लॉग बहुत अच्छा लगा. आपने सही कहा- दुनिया बहुत भली है, बस अपनी नजर भली रखो, सब भला-ही-भला है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद
प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा,
विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी,
साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा,
किसने कहा रिश्ते मुफ़्त मिलते हें,
मुफ़्त तो हवा भी नहीं मिलती,
एक सांस भी तब आती है,
जब एक सांस छोड़ी जाती है.