ख़ुद के लिए जी लूँ…
सोचा है आज थोड़ा सा खुद के लिये जी लूँ ।
दुनियाँ की बातों का जहर हँस के पी लूँ ।।
जालिम हैं दुनिया वाले,दर्द दे के भूल जाते हैं।
छीन के ख़ुशियाँ ग़ैरों से,फिर ये मुस्कुराते हैं।
कब तक जीती रहूँ एक जिंदा लाश बनकर।
हर रोज समाज की अंधी आग में जलकर।।
दिल की आवाज को आज सुनना है मुझे।
थोड़ा खुद के लिये भी तो जीना है मुझे।
सहती बहुत कुछ,बिना कोई शिकायत किए।
फिर भी लोगों को हमेशा रहती शिकायते क्यों ।
सहम सी गई हूँ,अब तो खुद की ही आवाज से।
पुछना है एक सवाल मुझे आज इस आवाम से।
भूल जाते हैं वर्षो के प्यार को लोग पल भर में।
छोड़ देते हैं अकेला जीने को तुम्हे इस भवँर में।।।
— संध्या चतुर्वेदी (मथुरा )