कविता – बदलते चेहरे
कितने चेहरे बदलोगे
दिन में अलग रात में अलग
तुम कितने चेहरे बदलोगे
इंसान हो कि गिरगिट हो
पल पल चेहरे बदलोगे
हर चेहरा कुछ बयां करेगा
कुछ अच्छा कुछ बुरा करेगा
खुदगर्ज़ी के सारे सबूत
परत दर परत खोलेगा
जुबां पर गुनाह के चिठ्ठे
वो हर हाल में बोलेगा
कितने चेहरे बदलोगे….
वक़्त का पहिया रुकता नहीं
गुनाह आईना बन जायेगा
जो किये घोर पाप तुमने
आईना सच दिखलायेगा
अब अधिक न सोचो
चेहरे बदलना भूल जाओ
रब ने दी सूरत तुम्हें प्यारी
असक चेहरे में खो जाओ
पाप की काली कमाई
और पाप की भारी गठरी
ये दोनों जीते जी मार लेती
इसलिए इनसे ऊपर उठो
परहित को पहचानो अब
कितने चेहरे बदलोगे
— कवि राजेश पुरोहित