कविता – हृदय अब तो आखे खोल !!
हृदय अब तो आखे खोल !!
जिस राधा का प्यार तु देखा ,
दुर्गा का अबतार भी देखा,
लछमी बाई की तलवार को देखा,
वो धरती कयो है बेहोश ।
हृदय अब तो आखे खोल !!
नारी का अपमान घटा है,
जीवन मे संग्राम बढ़ा है,
कलयुग सीना तान खड़ा है,
कैसा बिगड़ गया भूगोल ।
हृदय अब तो आखे खोल !!
सीता गीता की परवाह नही है,
दिखती कोई आह नही है,
क्या कोई अब राह नही है,
सवारथ वाले सबके बोल,
हृदय अब तो आखे खोल !!
क्या नारी की शान नही है,
क्या इसका अब गयान नही है,
क्या माता पर अभिमान नही है,
मत इसको तू हल्का तौल।
हृदय अब तो आखे खोल !!
— हृदय जौनपुरी