कविता – हमारा गुनाह और सावन !!
बे मौसम बरसात हो रही,
दिन मे जैसे रात हो रही।
जब होनी हो जमकर बारीस,
तब सूखे की, बात हो रही।।
पीपल बरगद सब बड़े कट गये,
घर आँगन मे,गमले सज गये।
लालच मे सब बिक गयी लकड़ी,
मौसम सारे बस, धरे रह गये।।
हम जो बोये ,बस वही मिल रहा,
महक खत्म ,बस फूल मिल रहा।
भरी जवानी,अब लग रहा बुढापा ,
जैसे बस जीवन के,दिन गिन रहा।।
प्रकृति हमारी माँ सी है रक्षक ,
पर हम खुद बन बैठै है भच्छक।
जंगल सारे हम सब काट रहे है,
फिर कैसे होगा जीवन रक्षक।।
— हृदय जौनपुरी