प्रेरणा
”मैम, आज भी मेरी कहानी आपको पसंद नहीं आई?” ऋतु मल्लिक के स्वर में तनिक हताशा थी.
”ऋतु, निराश होने की बात नहीं है, एक बार श्रेष्ठ सृजन करना आ गया, तो फिर कोई परेशानी महीं होगी. एक अच्छी रचना के लिए उसमें आदर्श भी होना चाहिए, यथार्थ भी और सीखने के लिए कुछ प्रेरणा भी.”
”इतनी सब बातें एक रचना में!” ऋतु के स्वर में हैरानगी झलक रही थी.
”बिलकुल आदर्श के बिना रचना मारक-संहारक हो जाएगी, यथार्थ के बिना उसे कोई स्वीकारेगा नहीं और प्रेरणा के बिना हर कोई उसे व्यर्थ ही तो समझेगा न!”
”जी मैम. कुछ और टिप्स भी दीजिए.”
”दो बातें और- एक तो शीर्षक सटीक, सार्थक और आकर्षक होना चाहिए, दूसरे अपनी रचना पढ़कर आप स्वयं संतुष्ट हो जाती हैं, तो रचना अवश्य ही उत्तम होगी.”
”मैम, मैं किससे प्रेरणा ले सकती हूं?” एक के बाद एक ऋतु की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी.
”ऋतु, आप किसी से भी प्रेरणा ले सकती हैं. जो आपके मन को भाए, वही आपका हीरो हो सकता है. वैसे आप हिंदी में कथा-कहानी लिख रही हैं, तो 31 जुलाई आने वाली है, उस दिन हिंदी के महान कथाकर मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन होता है, उस दिन सोशल मीडिया पर मुंशी प्रेमचंद पर अनेक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, उनसे प्रेरणा ले सकती हो. वैसे आप भी किसी की प्रेरणा बन सकती हैं. एक और बात भी महत्त्वपूर्ण है- रचना में साहित्यिकता, रोचकता और आगे जानने की उत्सुकता बनी रहे, तो सोने पे सुहागा हो जाता है.”
”मैम, साहित्यिकता के लिए क्या करना होगा?” ऋतु ने शायद आज ही सब कुछ जानने के लिए कमर कस ली थी.
”साहित्यिकता के लिए शब्दों व कथनों का चयन देश-पात्र-काल के अनुसार करना, साथ ही मुहावरो-कहावतों-उद्धरणों आदिक का समुचित प्रयोग रचना के लिए अलंकारों का काम करता है.”
सचमुच कुछ दिनों बाद मेरी वह शिष्या हमारी प्रेरणा बन गई. छोटी-सी उस छात्रा की एक कहानी कहानियों की विशेष पत्रिका ‘सरिता’ में प्रकाशित हुई. अस्पताल में भर्ती उस छात्रा को सरिता से 450 रुपये पारिश्रमिक मिला. 1985 में ‘सरिता’ में उसकी कहानी प्रकाशित होना और इतना पारिश्रमिक मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि थी. मेरी अन्य अनेक छात्राओं ने भी ऋतु से प्रेरणा लेकर साहित्य-सृजन में कदम बढ़ाए.
लीला बहन , जिस को आप जैसी शिक्षिक मिले वोह कैसे न कुछ कर पायेगा .सरिता के कुछ अंक मैंने भी बहुत अरसा पहले पढ़े थे .बहुत अछि मैगजीन थी .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको ब्लॉग बहुत अच्छा लगा. यह सब ऋतु का ही कमाल है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद
एकदम सही बात कह गए प्रेमचंद
मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है.
जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवाय और क्या है?
हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं.
चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसको अमृत समझकर पी न जाएं.
मुंशी प्रेमचंद