लेख- क्यों न हो देश-प्रदेश के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र युवा मंत्रालय
युवा अगर देश और समाज का कर्णधार है। तो एक अदद नौकरी उसकी जरूरत। बिना नौकरी के एक युवा न अपने घर-परिवार की मदद कर सकता है, और न देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था में सहभागिता निभा सकता है। आज हम मानते हैं, कि सुनहरे भविष्य के लिए सरकारी नौकरियों की प्राथमिकता बढ़ रही। लेकिन ऐसे में अगर देश की शिक्षा व्यवस्था के साथ शासन-प्रशासन का तौर-तरीका और प्रबंधन बेहतर नहीं होगा। तो युवाओं के हाथ में नौकरी कहाँ से हो सकती है, और ऐसे में जब युवाओं के पास रोजगार के साधन नहीं होंगे। तो कैसे हर हाथ शक्ति और हर हाथ तरक़्क़ी का फॉर्मूला सिद्ध होगा। एक सरकारी आंकड़े की बात करें तो देश का दिल मध्यप्रदेश भी बेरोजगारी के मक्कड़जाल में उलझता जा रहा है। सरकारी आंकड़े कहते हैं, मध्यप्रदेश में लगभग 1 करोड़ 41 लाख युवाओं की तादाद है। वहीं अगर बात सूबे में की जाएं, तो बीते दो वर्षों में बेरोजगारी की संख्या 53 फ़ीसद तक बढ़ गई है। सरकारी रपट के मुताबिक जहां देश के ह्रदय मध्यप्रदेश में दिसंबर 2015 तक पंजीकृत बेरोजगार लगभग 15 लाख के क़रीब थे। वह संख्या 2017 के आखिर में आते-आते विकास के दावों और सरकारी नीतियों से आंख मिचौली करते हुए लगभग 24 लाख के करीब पहुँच जाती है।
स्थिति दयनीय तो तब मालूम पड़ती है, जब आंकड़ों की निगहबानी करने पर पता चलता है, कि सूबे के 48 रोजगार कार्यालयों ने मिलकर 2015 में कुल 334 लोगों को ही रोजगार उपलब्ध कराया। वहीं सूबे की हालत ये है, कि युवाओं को अपने लिए रोजगार की गुहार लगाने के लिए सूबे में बेरोजगार दल का गठन तक करना पड़ रहा है। ऐसे में रोजगार उपलब्ध कराने और स्वरोजगार को प्रोत्साहन दिलाने वाली नीतियों की कलई अपने आप खुलती नज़र आती हैं। ऐसे में कोई अगर सामान्य ज्ञान की जानकारी में आपसे कहें, कि किस प्रदेश में हर छठवें घर मे एक युवा बेरोजगार और हर सातवें घर मे एक शिक्षित बेरोजगार बैठा है। तो आप धड़ल्ले से निःसंकोच जवाब दे सकते हैं। सूबे के दिल की यह दुख भरी कहानी है। ऐसा भी नहीं सूबे में कोई स्थायी रहनुमाई व्यवस्था न स्थापित रही हो। पर कमजोर नीतियों और शिक्षा तंत्र के प्रति लापरवाही भरा सियासी रवैया सूबे के भविष्य पर ग्रहण लग गया है। प्रदेश में उच्च शिक्षा से लेकर माध्यमिक शिक्षा में फफूँदी लग चुकी है। जिसके पुनरुत्थान के लिए कोई नीति और विचार नीति-नियंता के पास दिख नहीं रहे।
ऐसे में अब समय की मांग है, कि देश और प्रदेश में स्वतंत्र युवा मंत्रालय का गठन किया जाए। इसके साथ राजनीति में युवाओं के लिए कम से कम 25 से 30 फ़ीसद सीटें आरक्षित की जाएं, क्योंकि अगर नए चेहरे सदन में पहुँचेगे तो उन्हें युवाओं की दुश्वारियां भी भान होगी और नए विचारों से ओत-प्रोत होंगे। जो प्रदेश और समाज की उन्नतिशीलता के लिए सार्थक पहल हो सकती है। इसके अलावा 18 से 35 वर्ष के युवाओं को स्वरोजगार स्थापित करने का सुनहरा माहौल उत्पन्न कराया जाए। जैसी सार्थक पहल हिमाचल सरकार ने शुरू की है। हिमाचल प्रदेश की सरकार ने अपने प्रदेश के युवाओं को स्वरोजगार के माध्यम से स्वावलंबी बनाने के लिए नई नीतियां और योजनाएं बना रही है। तो उसका अनुसरण देश के दिल के साथ अन्य राज्यों को बेहतर तरीक़े से भी करना चाहिए।
हिमाचल सरकार ने मुख्यमंत्री स्वावलंबी योजना के तहत नए उद्योग स्थापित करने के लिए मशीनरी आदि खरीदने के लिए 40 लाख रुपए तक निवेश और 25 फ़ीसद की दर से अनुदान आदि उपलब्ध करा रहीं। इसके साथ खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी और स्थापित इकाई के लिए अगर हिमाचल सरकार प्लांट के कुल लागत का लगभग 33 फ़ीसद अनुदान दे रहीं। तो ऐसी नीतियों के सफ़ल क्रियान्वयन की सख़्त दरकरार सूबे को भी है। जिस तरफ़ रहनुमाई व्यवस्था को ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा सूबे के युवाओं का रुझान कृषि की तरफ बढ़ाने के लिए उन्हें उन्नत तकनीक के साथ प्रदेश में ख़ाली पड़ी हजारों एकड़ ज़मीनों पर नगदी की फ़सल आदि करने का समुचित सुविधाएं मयस्सर कराई जाए, क्योंकि कृषि ही ऐसा क्षेत्र है। जिसमें उत्पादन का गुण पाया जाता है, और बाक़ी सभी चीज़े तो रीसाइक्लिंग की जाती हैं। जिनका निश्चित भंडार होता है। पर दुर्भाग्य देखिए जिस देश की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि रही है। वहीं पर खेती-किसानी के लिए लचर नीतियों पर काम चल रहा। तो कृषि को उन्नतशील बनाकर युवाओं को उस तरफ़ बढ़ाना होगा। साथ में शिक्षा को रोज़गारपरक बनाने के लिए प्रयोगात्मकता पर बल दिया जाए। तब जाकर देश का दिल बेरोजगारी के जिन्न से मुक्त हो सकता है।