कविता – लालच
हर कोई खुश हो रहा,
ये सोचकर।
हर किसी को खाना है,
मुझको नोचकर।।
भूख चाहे जैसी हो,
इस इन्सान की।
हरकते करने लगे ,
जब शैतान सी।।
तब समझना,नाश क्या,
महा नाश है।
हद से ज्यादा बढ़ती,
हुई एक प्यास है।।
लालचो का ऐ समंदर,
इतना खारा है।
सब डूबा देगा कि,
जो भी प्यारा है।।
— हृदय जौनपुरी