कविता

सावन में साजन संग अच्छा लगता है

सावन में साजन से मिलना अच्छा लगता है ।
मेहंदी और महावर से सजना अच्छा लगता है ।
ये चूड़ी और कंगना अच्छा लगता है ।
अमवा की डाली पर झूला डालकर ,
साजन संग झूलना अच्छा लगता है ।
माथे पर बिदियाँ और आँखों में काजल अच्छा लगता है।
सखियों के संग नाचना-गाना अच्छा लगता है ।
ढोलक की थाप पर कजरी गाना अच्छा लगता है ।
शाम सवेरे खुद को महकाना अच्छा लगता है ।
कानों में बाली और बालों में गजरा अच्छा लगता है।
सखियों संग सावन अच्छा लगता है ।
रिमझिम बरखा और बादल का गरजना अच्छा लगता है।
मिट्टी की खुशबू और चिड़ियों का चहकना अच्छा लगता है ।
कोयल की कुहू – कुहू और मोर का नृत्य अच्छा लगता है

मेंढक की टर्र – टर्र
और जुगुन का चमकना अच्छा लगता है।

बगिया में फूलों और पेड़ों पर झूलो का संग अच्छा लगता है।
चाय संग चटनी से गर्म पकौडा अच्छा लगता है।
घेवर संग फैनी और रसगुल्ला अच्छा लगता है।
कागज की कश्ती और नाली का पानी अच्छा लगता है।
सखी सावन में साजन का संग अच्छा लगता है।।

संध्या चतुर्वेदी

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल sandhyachaturvedi76@gmail.com

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  • संध्या चतुर्वेदी

    हार्दिक आभार

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