इज़हार
आए थे पास जब वो, यूं प्यार को लिये।
लफ़्जों में पिरोये हुये, इज़हार को लिये।
हर वक्त का मनुहार, वो अंदाज़ सुहाना,
दिल हारने लगा था, इनकार को लिये।
आख़िर वो प्यार हमने, सर से लगा लिया,
ख़ामोश से लबों पे , इकरार को लिये।
वो प्यार वो इज़हार, अब आता नहीं नज़र,
जाने कहां गया वो , इसरार को लिए।
आने लगे दिल में, नामुनासिब से ख़यालात,
बढ़ने लगी है उम्र , इंतज़ार को लिये ।
— पुष्पा “स्वाती”