कुआं
अक्सर महिलाएं कहती मिलती हैं- ”ये घर एक कुआं है. काम करते जाओ, खत्म ही नहीं होता.”
और ”ये पर्स भी एक कुआं हैं, जो चीज चाहिए, मिलती ही नहीं है.”
लेकिन मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के भीकनगांव की ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर चुकी ज्योति और कविता नामक दो बहनों ने अपने इंजिनियर भाई के साथ मिलकर कुआं खोदकर तैयार कर दिया और उसमें पानी भी मिल गया.
दोनों बेटियों से इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया, ‘तीन सालों तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद हमें यह एहसास हो गया था कि प्रशासन की तरफ से इस मामले में कोई मदद नहीं मिलने वाली है. हम अपने पिता और चाचा को और अधिक परेशान नहीं देख सकते थे. इसके बाद हमने अप्रैल में खुद ही इस काम को पूरा करने का फैसला किया, जब पारा 40 डिग्री के पार जा रहा था. अब हमारे पिता और चाचा को सिंचाई की परेशानी नहीं होगी और वे अगले साल की गर्मियों के लिए तैयार रहेंगे.’
”यानी पारा 40 डिग्री के पार और पूरे चार महीने आप लोगों ने कुआं खोदने के लिए जी तोड़ मेहनत की?”
”तो क्या हुआ? अपनी जिंदगी की सारी कमाई पिताजी ने हम बेटियों की पढ़ाई पर ही खर्च कर दी, प्रशासन इस कुएं को 10 फीट खोदने के बाद भूल गया था और बार-बार सुनवाई करने पर कोई सुध नहीं ले रहा था, तो कुआं खोदना हमने अपना फर्ज़ समझकर पूरा किया.”
नम आंखों से पिता बाबू भास्कर ने कहा, ”अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इस मेहनत के लिए उन्हें शाबासी दूं या फिर अपने पर पछतावा करूं कि मैंने उन्हें मजदूर में बदल दिया. बेटियों ने भरी दोपहरी में अपनी कमर में रस्सी बांध कर कुएं से पत्थरों को खींच कर निकाला. यह मेरे लिए बहुत ही भावुक क्षण है.’
मन से निकली बात- ”शाबाश, बेटियां हों तो ऐसी! ज्योति और कविता जैसी.”
खिलती हुई कलियाँ हैं बेटियाँ,
माँ-बाप का दर्द समझती हैं बेटियाँ,
घर को रोशन करती हैं बेटियाँ,
लड़के आज हैं तो आने वाला कल हैं बेटियाँ.
बेटी भार नही, है आधार,
जीवन हैं उसका अधिकार,
शिक्षा हैं उसका हथियार
बढ़ाओ कदम, करो स्वीकार.