कविता

अफवाह…..

अफवाहों का बाजार गर्म है
रोटियां सेंकने वाले क्यूं नर्म हैं

अरे भई! जा रही लोगों की जान है
भीड़ बेकाबू है, जनता परेशान है

ना ओर है, ना अंत है, बस शोर है,
फिर मौत का सन्नाटा है

भावनाएं सर्द हैं, मस्तिष्क में गर्द है
यह सब देखकर होता बड़ा दर्द है

न लोभ है, न लालच है
ऐसे कृत्य पर तो लानत है

कर रहे हैं तरक्की, जा रहे हैं मून और मार्स पर
कहां गई संवेदनाएं, संज्ञा क्यूं शून्य है

कला, संस्कृति संपन्न लोग हैं हम
या कि मनचला, आक्रोशित भीड़ हैं हम

अफवाहों को सुनकर आती कहां से ये भीड़ है
जब होती हैं शिकार बच्चियां, तब जाती कहां ये भीड़ है

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]