गीत : देश-प्यार के
मैंने लिखे हैं गीत यूँ कितने ही, रूप और प्रेम के सार के
कैसे मगर आज लिख लूँ मैं बताओ, गीत प्रेम के, श्रृंगार के
सजाया है इस धरा ने मुझे तो अब तक, अमूल्य उपहार से
लिखती हूँ अभी ही गीत मैं सुन तो लो, अपने देश के प्यार के l
बिन देश-प्रेम के लगे मुझे अब तो, हर काम सच में अधूरा-सा
देशभक्ति, देशप्रेम और मनुजता में तो, लगे काम पूरा-सा
तपन हृदय की और तृष्णा बुझती है मेरी, अमृत की धार से
लिखती हूँ अभी गीत मैं सुन तो लो, अपने देश के प्यार के
मन तो यहाँ इस देश में सभी का, उल्लास-उमंग से भरा था
घुसपैठियों का कभी ध्यान ही कहाँ था, या किसी ने भी धरा था
आँखें तो चमक रही थीं देशवासियों की, खुशियों के ख़ुमार से
लिखती हूँ गीत मैं सुन तो लो, अपने देश के प्यार के
आत्मबल का ज़ज़्बा सारा ब्रह्माण्ड तो, सेना में है भर रहा
विश्वास भरा हुआ हर बच्चा देश का ध्वज है ऊँचा कर रहा
देश की सारी जनता सुनो ओ सैनिको, आज तुम्हारे साथ है
लिखती हूँ गीत मैं सुन तो लो, अपने देश के प्यार के
उठो सिपाहियो रौंद डालो, दुश्मनों की अब तो सारी कोशिशें
सीमा के उस पार ही जाकर तुम अब, काटो सारी ही बंदिशें
कोटि-कोटि वीर सिपाही देश के हित अब, मरने को तैयार हैं
लिखती हूँ गीत मैं सुन लो अब, अपने देश के प्यार के
शहीदो, तुम्हारी वीरता और क़ुर्बानी, क्रांति नई लायेगी
धन्य होगी भारत की यही भूमि, कई वीर नए उपजाएगी
राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह जैसे, हँस-हँसकर प्राण वार दें
लिखती हूँ गीत मैं सुन लो अब, अपने देश के प्यार के
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’