दीप माटी का बनूंगा
बुझने से पहले, अंधेरों
तुमसे जी भर मै लड़ूंगा।
दीप माटी का बनूंगा।
दीप माटी का बनूंगा।
पाँव के छाले हों चाहे,
या झड़ी हो नीर की।
तोड़ न पाएंगी कभी,
तीव्रता भी पीर की।
जितना ही भीगेंगी आँखें,
गीत उतने ही लिखूंगा।
दीप माटी का बनूंगा।
सूर्य की किरणों के आगे,
मै भले टिक पाऊँ न।
जगमगाते नभ के आँचल,
में भी जगह पाऊँ न।
चंद्र बन कर के अमा की,
रात में फिर भी दिखूंगा।
दीप माटी का बनूंगा।
आस भरे फूल सुरभित,
स्नेह से मै सींच कर।
काँटों के भी बीच से,
सारी निराशा खींच कर।
सूखी हुई डाली पे नन्ही,
कोंपलों सा मै खिलूंगा
दीप माटी का बनूंगा।
डर नही कोई मुझे है,
हूँ अकेला भी अगर।
राह हो सकती कठिन है,
मै कठिनतम हूँ मगर।
माटी से जन्मा आखिर,
माटी में ही जा मिलूंगा।
दीप माटी का बनूंगा।
डॉ मीनाक्षी शर्मा