कारवां
चलने लगा है मुस्कुराता कारवां ये हयात का
चल पड़ो सब साथ मसला छोड़ जात पांत का
रब ने भेजा है हमें एक ही दुनियाँ में साथ
क्यूं बढ़ाते फ़ासला हो नामुनासिब बात का
चांद सूरज और तारे सबके हैं साझा यहां
रब ने ये तौफा दिया है एक से दिन रात का
आओ मिलके साथ हम सब बैठ के बातें करें
हो शुरु यूं सिलसिला कुछ ऐसी मुलाकात का
कभी तो दिल की सुनों लोगों की बातें छोड़कर
कर न देना अनसुना तुम रुह के जज़्बात का
आओ हम खाएं कसम बातें न हों अलगाव की
मिलकर करेगे सामना कैसे भी हों हालात का
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”