ग़ज़ल
चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है
इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |
सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी
अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |
खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ
चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |
लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात एक
सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है |
लिया है जन्म इस भारत में’,यह है माँ समान आराध्य
विवेकी कठघरा में हमवतन की आजमाइश है |
ग़ज़ल नज़्म और वो किस्से लिखे जो भी अभी तक वे
महफ़िल में अब सभी माहिर सुखन की आजमाइश है |
चमनआरा कभी भी कुछ कसर छोड़ा नहीं है फिर
यही कहना सही होगा, चमन की आजमाइश है |
लहंगा और चोली सब हुई है जीर्ण नव युग में
नए युग में स्वदेशी पैरहन की आजमाइश है |
मदारी जिंदगी ‘काली’ नचाई है बहुत त्रय हद
जवानी प्रौढ़ बीते, चौथपन की आजमाइश है |
शब्दार्थ :- चमनआरा=माली
अभिपतन=पूर्ण पतन, पैरहन=वस्त्र
त्रय हद= तीन भाग [बाल्य काल. यौवन काल
प्रौढ़ काल ] चौथपन= चौथा काल, बुढापा
कालीपद ‘प्रसाद’