कथा साहित्यकहानी

नई सोच -कहानी

नई सोच

दीपा की शादी 10 वर्ष की उम्र में ही दीपंकर से हो गई थी | गांवकी रीति-रिवाजों के अनुसार वह 16 वर्ष की उम्र तक मायके में ही रही | उसके बाद उसका गौना हुआऔर वह ससुराल आई | इस समय उसके ससुराल में केवल सास और उसके पति थे | शादी के 2 साल बादउसका ससुर का देहांत हो गया था | ससुराल में उसे अकेलापन महसूस होने लगा किंतु जल्दी ही वह पड़ोस के हमउम्र लड़कियों एवं बहुओं से दोस्ती कर ली | दिन हंसी खुशी घरेलू कामकाज में व्यस्त हो कर बीतने लगा | खाली समय सहेलियों के साथ हंसी मजाक में समय कट जाता था | देखते देखते 5 साल बीत गए | अब सहेलियां उसे मजाक में कहती थी- अरे दीपा अब तो अपना हनीमून समाप्त कर | अब घर में कोई नया मेहमान आना चाहिए | दीपा धतकह कर मुंह फेर लेतीतो सहेलियां उसे औरचिढ़ाती | सहेलियोंकी हंसी मजाक, ठिठोली तो वह मजाक में ले लेती और उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देती किंतु सास ने एक दिन उसे पास में बुलाकर बोली, ”बहू अब तो मुझे तू पोते का मुंह दिखा दे” तो उसके शरीर में जैसे सिहरन पैदा हो गया |बोली कुछ नहीं पर आंखें नीची कर सर हिलादिया |
रात में दीपंकर को मां से हुई बातें बता दी | दीपंकर भी बच्चा चाहता था किंतु यह सोच कर हैरान था कि अभी तक दीपा गर्भवती क्यों नहीं हुई | परिवार नियोजन का कोई साधन प्रयोग भी तो नहीं किया, फिर बच्चा क्यों नहीं हो रहा है ? उसे शर्म महसूस हो रही थी यह सोच कर कि कहीं उसमें तो कोई दोष नहीं है | यह बात किसी से बोल नहीं पा रहा था और ना शर्म के कारण डॉक्टर के पास जा पा रहा था | ऐसी दुविधा के कारण 1 साल और बीत गया | तब सांस दीपा से पूछी,” बहू तू सच बता क्या कोई समस्या है ?”
दीपा बोली,” मुझे नहीं पता” |
“क्या तुमने दीपांकर से बात की ?”
“हाँ “
“क्या बोला उसने ?”
“उनको भी कुछ पता नहीं | “
“क्या किसी डॉक्टर के पास गए थे ?”
“ नहीं, वह जाना नहीं चाहता ”
सास बोली, “ अरे कुछ समस्या है तो डॉक्टर ही तो बताएगा उसका इलाज क्या है | चलो हम तुम्हें डॉक्टर के पास ले चलते हैं |”
शाम को जब दीपंकर घर लौटा तो माँ ने उसे कहा, “ दीपंकर कल तुम और बहू मेरे साथ शहर जाओगे |”
दीपंकर ने पूछा “क्यों माँ ?”
“वहीँ जाकर बताउँगी” माँ ने कहा |
दूसरे दिन तीनों शहर में एक गायनेकोलॉजिस्ट के पास पहुंचे | दोनों को बाहर बैठा कर सास डॉक्टर के पास चली गई और पूरी बात विस्तार से बता दीकि 6 साल के दांपत्य जीवन के बादभी उसकी बहू अभी तक गर्भवती नहीं हुई | इसलिए डॉक्टर से निवेदन किया किबहु बेटे का जांच कर ले कि उनमें क्या कमी है |
डॉक्टर ने कहा,” ठीक है आप बाहर जाकर बैठियेऔर बहु बेटे को अंदर भेज दीजिए |”
सास बाहर आकर बहू और बेटे को अंदर भेज दी |
डॉक्टर ने आवश्यक जानकारी दीपंकर और दीपा से प्राप्त कर कुछ परीक्षण के लिए सिफारिश की | उन्होंने कहा “घबराने की कोई बात नहीं, परीक्षण के नतीजा आने के बाद ही हम कुछ कह पाएंगे | तुम दोनों को ही यह टेस्ट कराना है | डॉक्टर ने दीपा और दीपांकर को अलग अलग पर्ची देकर उन्हेंएक सहायक के साथ डायग्नोस्टिक सेंटर में भेज दिया | दोनों को टेस्ट हो जाने के बाद उन्हें 2 दिन के बाद आने के लिए कहा |
दो दिन के बाद माँ, बेटा, बहू, तीनों फिर डॉक्टर के पास गए | डॉक्टर ने तीनों को अंदर बुलाया और फिर उनको कहा,” आपके बेटे में तो कोई कमी नहीं दिखाई दीकिंतुबहु में कुछ खामियां नजर आ रही है किंतु घबराने की कोई बात नहीं इलाज से ठीक हो जाएगा | मैं कुछ दवाइयां लिख देती हूँ |इसे खिलाते रहिए | महीने मेंएक बार आकर दिखाकर जाइए | आशा है इससे ठीक हो जाएगा | दवाई खाते खाते 6 महीने और बीतगए किंतु कोई सुफलनजर नहीं आया | तब सांस के साथ बहू भी बहुत चिंतित रहने लगी | सास ने डॉक्टर से फिर अकेली मिली और पूछी ,” डॉक्टर साहब आप सच सच बताइए क्या बहु मां बन सकती है या नहीं?”
डॉक्टर ने कहा,” मुझे उम्मीद थी किस दवाई के लेने के बाद वह माँ बनने में सक्षम हो जाएगी, किंतु अभी तक वह गर्भवती नहीं हुई,इससे मुझे भी आश्चर्य हो रहा है |” उसका एक और टेस्ट करा कर देखती हूँ किक्या अन्य कोई समस्या है या नहीं | उन्होंने एक निजी हॉस्पिटल के बहुत निपुण डॉक्टर के पास उसे भेज दिया | वहाँबहू की जांच की गई और गहन परीक्षण के बाद डॉक्टर ने सास कहा,” मुझे खेद है मां जी आपकी बहू कभी मां नहीं बन सकती |” यह सुनकर सास, बहू और बेटे के ऊपर मानो एक पहाड़ टूट पड़ा | सदमे में बहु बेहोश हो गई | उन्हें किसी तरह होश में लाया गया | बहू जब होश में आ गई तो डॉक्टर ने कहा, “ माँ जीयदि आप बुरा ना माने तो एक बात कहूँ ?”
सास ने धीमी आवाज में बोली, “कहिये|”
डॉक्टर ने कहा,” आजकल ऐसे बहुत से औरतें हैं जो माँ नहीं बन पाती है और ऐसी समस्याएं शहरों में ज्यादा है | इस हालात में वेऔरतें अनाथालय से बच्चे गोद लेते हैं | उनका पालन पोषण प्यार से करते हैं | वही बच्चे उन्हें मां बाप कह कर पुकारते हैं | बच्चों की कमी महसूस होने नहीं देते | इससे 2 फायदे हैं, पहला यह कि एक अनाथ बच्चे को मां बाप का प्यार मिल जाता है, उसका जीवन संवर जाता है | जीवन में लावारिस होने से बच जाता है और समाज में एक अच्छा इंसान बन जाता है | दूसरा फायदा यह है एक संतानहीन दंपत्तिकी गोद भर जाती है औरउन्हें बच्चों की कमी महसूस नहीं होती | एक परिवार पूर्ण हो जाता है | ऐसी घटनाएं तो राजा महाराजाओं के परिवार में भी होती है | वहां भी बच्चे गोद लिए जाते हैं | आप अपने परिवार को पूर्व बनाने के लिए इस विषय पर विचार कर सकती हैं | अगर आपको ठीक लगे तो मुझ से बाद में संपर्क कीजिए, इसमें मैं आपका मदद कर सकता हूँ|”
डॉक्टर की बात सास को अच्छी नहीं लगी| एक पराया बच्चे को अपना बच्चा मानकर उसका लालन-पालन करना यह ग्रामीण परिवेश के लिए स्वीकार्य नहीं है | उसने डॉक्टर को नमस्कार कहा और बहु बेटे को लेकर बाहर निकल आई |
गांव में यह खबर फैलने में देर नहीं लगी कि दीपा कभी भी माँ नहीं बन सकती |अब सहेलियां उससे कन्नी काटने लगी | दबी आवाज में उसे बाँझ कहने लगी तो दीपा को सूलजैसे चुगने लगा | वह बहुत-बहुतमायूस हो गई | उसमें जिंदा रहने की इच्छा ही खत्म हो गई | कभी-कभी सोचती है कि अब जिंदा रहने से फायदा क्या है, जिल्लत सहने से अच्छा तो मर जाना ही ठीक है | वह आत्महत्या की बातसोचती | उधर सांस भी अपने बेटेदीपंकर सेदूसरी विवाह के लिए दबाव डालनेलगी | इसे देखकर दीपा और दुखी हो गई | आखिर एक दिन वह दीपंकर से बोली,” आप मुझे छोड़ दो और दूसरी शादी कर लो | माँ को पोता चाहिए | उनकी इच्छा पूरी कर दो |”
दीपंकर उसे दोनों हाथों से खींच कर अपने गले लगा कर कहने लगा, “ दीपा मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता | बच्चे भले ही ना हो, तुम मुझे छोड़ कर कहीं नहींजाओगी | दूसरा विवाह नहीं करूंगा | जानता हूँ, माँको इस खानदान का कोई बारिश चाहिए | इसके लिए दूसरी शादी करने की जरूरत क्या है? क्यों ना हम डॉक्टर की बात मान लें और कोई बच्चा गोद लें | माँ को मैं समझा लूंगा | तुम बताओ अगर कोई बच्चा गोद लेते हैं तो तुम्हें तो कोई आपत्ति नहीं है?”
दीपा ने सर हिला कर जवाब दिया “ नहीं”
फिर दीपंकर ने पूछा,” तुम्हें लड़का चाहिए या लड़की ?”
दीपा ने कहा,”लड़की”
“तो ठीक है, मैं माँ से बात करता हूँ |” दीपंकर ने कहा
रात को खाना खाने के बाद जब तीनो एक जगह बैठकर TV देख रहे थे तभी दीपक गाने माँ से कहा,” माँ मैं सोचता हूँ कि डॉक्टर की बातको हम मान लें और कोई बच्चा गोद ले ले | आप क्या कहती हो |”
“अरेपराये बच्चे को पाल कर क्या करोगे| वह पराया ही तो रहेगा | अपना खून तो नहीं होगा ना? बड़ा होकर जब जान जाएगा कि वह तुम्हारा खून नहीं है तो क्या वह तुम्हारा ख्याल रखेगा? कभी नहीं | कौवे के बच्चा तभी कोयल का ख्याल नहींरख सकता | “
“माँ, ऐसी बात नहीं, उसे लाड़ प्यार से पालोगे, शिक्षित बनाओगे तो वह तुम्हारा ही बनकर रहेगा | कृष्ण की माँ तो देवकी थी, उसका पालन पोषण यशोदा ने किया और कृष्ण ने भी यशोदा को ही माँ कह कर ज्यादा सम्मान दिया | इसके बिपरीत कंस अपने बाप को कैदी बनाकर कैदखाने में डाल दिया |अपनी बहन को भी कैद कर लिया | इसीलिए सिर्फ अपना खून होना ही अच्छी संतान का होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है |यह तो परिस्थिति और परिवेश पर निर्भर करता है | परिस्थिति की वजह कोई बच्चा अनाथ हो गया है तो उसे अगर सही परिवेश मिले तो वह अच्छा इंसान बन सकता है| ऐसा मैं सोचता हूँ | दीपा भी बच्चा गोद लेने के लिए तैयार है | किंतु अंतिम फैसला आपका होगा | आप जो कहेंगी वही होगा | किंतु एक बात मैं स्पष्ट रुप से आप को बता देना चाहता हूँकि मैं दीपा को छोड़कर और कोई दूसरा विवाह नहीं करूंगा |”
सप्ताह बीत गया | उसकी माँ ने कोई जवाब नहीं दिया | दरअसल उसकी माँ के मन में एक द्वंद चल रहा था | एक तरफ उसके पुराने सदियों से चले आ रहे हैं संस्कार जिसे एक झटका में उतार देना मुश्किल था दूसरी ओर दीपंकर का अकाट्य तर्क उसे झकझोर रहा था | फिर गांव में एक नई परिपाटी की स्थापना करने के लिए लोगों की जो संकीर्ण सोच एवं व्यंग वाण का सामना करना पड़ेगा उस से भयभीत हो रही थी |सोच के इस त्रिवेणी में फंसकर वह निर्णय नहीं ले पा रही थी | किंतु धीरे धीरे उसकी सोच में परिपक्वता आने लगी | क्रियाकलाप से ही संस्कार,संसार तो परिवर्तनशील है, हर समय कुछ ना कुछ परिवर्तन हो रहा है | समाज के नियम कानून में भी परिवर्तन हो रहा है | फिर हमारे सोच में क्यों नहीं? जहां तक लोगों की आलोचना की बात है यह भी सामयिक और तात्कालिक है | कुछ दिन बाद सब शांत हो जायगा | नियम कोई दैव निर्मित अटल सत्य नहीं है वरन परिवर्तनशील है |इसलिएइसको छोड़ा जा सकता है | सब लोग भूल जाएंगे | बच्चा आगर अच्छे निकले यही लोग उसकी तारीफ करते नहींथकेंगे | इसलिए दीपंकर की बात को मानकर बेटे और बहू को वह खुशी दे सकती हैऔर अपने परिवार को पूर्ण बना सकती है | उसने बाकी सब बात को भूल कर अपना निर्णय ले लिया |
सुबह उठकर उसे दीपंकर से कहा,” बेटा जाओ तुम उस डॉक्टर साहब को बोल कर आ जाओ कि हम बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हैं| अब तुम लोग यह सोच लो तुम्हें बेटा चाहिए या बेटी, डॉक्टर को वैसे ही बता कर आना |”
माँ की बात सुनकर दीपंकर बहुत खुश हुआ | पास में दीपा खड़ी थी, खुशी में उसकी आंखें बहने लगी |
दीपंकर ने जब गोद लेने की बात डॉक्टर को कही तो डॉक्टर भी बहुत खुश हुआ और उसे बधाई देते हुए यह कहा,” दीपंकर तुम्हारा यह निर्णय गांव की जिंदगी में एवं लोगों की सोच में एक नया परिवर्तन लाएगा और इस परिवर्तन का श्रेयजाने अनजाने में तुम्हें ही मिलेगा | “
एक सप्ताह के अंदर दीपंकर और दीपा ने एक नवजात बालिका को गोद ले लिया |
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कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !