ग़ज़ल
राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है
सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |
अद्भूत जीव जानवरों का जहान है
नीचे धरा, समीर परे आसमान है |
संसार में तमाम चलन है ते’री वजह
हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |
जो भी जमा किये यहाँ’ रह जायगा यहीं
कुछ साथ जायगा नहीं’ फिर क्यों गुमान है |
तू कौन है ? नहीं पता’ कुछ भी अभी यहाँ
घर तेरा’ कोई’ है तो’ कहाँ वो मकान है ?
इलज़ाम जो लगाया’ सभी झूठ है सनम
मैं चुप जरूर किन्तु मे’री भी जबान है |
जो ज़ख्म बेवफा ने’ दिया वो नहीं भरा
हृद चोट जो लगी, अभी’ उसका निशान है |
वो नोट से खरीदते’ सब वोट अब तलक
अब गैस मोल में दिया’ ना मेहरबान है |
वो पांच साल राज किये अब हिसाब दे
जन प्रश्न का जवाब ही’ तो इम्तिहान है |
इक अर्ब लोग किन्तु, मिली ताज तुझको’ ही
‘काली’ समझ करोड़ में’, तू भाग्यवान है |
कालीपद ‘प्रसाद’