ग़ज़ल
रहनुमा दूंढते हैं’ माल कहाँ
सत्ता’ कुर्सी समान हाल कहाँ |
प्यार में तेरे’ मैं हुआ बेहाल
मेरे’ तक़दीर में विसाल कहाँ |
रात दिन व्यस्त हैं सभी सैनिक
देखते हैं कि कब बवाल कहाँ |
रहनुमा ने तमाम सत्य कहा
बेमिशाल और वो कमाल कहाँ |
चाहते थे शहीद हो जाऊं
व्यग्र उन्मत्त, ये निहाल कहाँ |
वो लड़ाई अलग ही’ थी इससे
खून में अब वहीं उबाल कहाँ |
जब तलक भी भरे न खुद का’ उदर
और के पेट का ख़याल कहाँ |
मन वचन से है’ रहनुमा ढोंगी
त्याग ‘काली’ खरा मिसाल कहाँ |
कालीपद ‘प्रसाद’