औरत !
पूनम आज भी अपने पति के साथ ज़िन्दगी गुजारना चाहती थी पर समय जाने क्या-क्या रंग दिखा रहा था। औरत हूँ शायद इसलिए इतना बड़ा फैसला नहीं ले पा रही हूँ….ऊपर से दो बेटियां हैं वो भी मेरी हालत नहीं समझ रहीं। सास एक औरत होकर मेरी गृहस्थी को बर्बाद करने पर उतारूँ हैं।
रोज उसी तनाव से गुजरना होता था अब तो नौकरी में भी मन नहीं लग रहा था। पति देवेन दूसरी औरत को भी छोड़ना नहीं चाहते थे, पर अपनी बेटियों के अच्छे भविष्य के लिए पूनम अपने पति को समझाकर उसे सही रास्ते पर लाना चाहती थी। जो था तो बेहद मुश्किल पर… अपना घर बचाने के लिए वो हर संभव प्रयास करना चाहती थी। बेटियां भी माँ की भावनाएं समझ नहीं रही थी। वो भी अपनी सहुलियत के लिए पापा की गलती पर भी साथ दे रही थी, सास तो चाहती थी कि ये घर छोड़कर ही चली जाए। पूनम का विश्ववास भी अब खोता जा रहा था, उसे अपना वैवाहिक जीवन अब खत्म होता दे रहा था। अब तो पति का ज्यादातर समय दूसरी औरत के साथ ही बीत रहा था, अब तो उसने साफ तौर पर कह दिया था कि मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता। मैं सुमन के साथ खुश हूँ , मेरी बेटियां मेरे साथ रह सकती हैं उन्हें मैं किसी बात की कमी महसूस नहीं होने दूंगा। पूनम का दिल पूरी तरह टूट चुका था, बड़ी बेटी 19 वर्ष की थी वो भी पापा के साथ रहना चाहती थी। पूनम ने भी हार कर एक खत्म रिश्ते को छोड़ देना ही सही समझा। पर कदम बार -बार बेटियों के लिए रुक जाते,इस उम्र में बेटियों को कहां लेकर जाऊं। अब तो बेटियों ने भी माँ का दर्द समझने से इंकार कर दिया था, उन्हें इतना बड़ा घर सब सुख सुविधाएं माँ नहीं दे सकती थी उन्हें पापा भी चाहिये थे। पूनम के पापा नहीं थे, माँ बीमार थी एक भाई था जिसकी शादी हो चुकी थी। न तो भाभी पूनम को इस तरह सहारा देती बस एक बहन थी जो जज थी, जो उसे सहारा दे सकती थी। आखिर पूनम की दुख की घड़ी आ ही गई जब पूनम को हार कर सबको छोड़ कर जाना पड़ा। पति अब बात बात पर मारने लगा था। आखिर थी तो वो भी इंसान , हर तरह से हताश होकर इस बेइज्जती की ज़िन्दगी से वो अपनी बहन के पास सहारा लेने चली गई। जीजाजी ने भी हालात को देखते हुए रहने की इजाज़त दे दी क्योंकि पूनम का पति और सास उससे नाखुश थे वो किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थे। पूनम ने इतना समय बेटियों की खातिर निकाल दिया था, पति को समझाने की कौशिश भी की पर वो अपने में मस्त था कहता था कर ले जो करना है मैं नहीं डरता किसी से। पूनम अपने भविष्य से अंजान थी पर अब वो अपने स्वाभिमान को इतना गिराकर नहीं जीना चाहती थी। अपनी बहन से भी कह दिया था कि तनख्वाह जोड़कर छोटा सा घर लेकर चाहे एक कमरा हो वहीं रहेगी और पति से तालाक ले लेगी कोई झगड़ाया आरोप प्रत्यारोप नहीं करने वैसे भी जिस रिश्तते में कुछ बचा ही नहीं है उसे अब और नहीं खींचना चाहती। प्यार मांगने से नहीं मिलता। बेटियों की मर्जी उन्हें भी विवश नहीं करूँगी वो जब मेरे पास आना चाहे आ सकती हैं।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !