खाली बैंक खातों पर जुर्माने का औचित्य ?
इस कथित लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी नियम कायदे कानूनों का दो तरह से प्रयोग किया जाता है ,एक ही कानून की धारा अमीर ,ताकतवर और रसूखदार के लिए अलग तरह से व्यवहार में लाई जाती है और वही कानून एक गरीब ,कमजोर और साधारण आम जन के लिए अलग तरह से प्रयोग में लाई जाती है ,ये बातें शासन की हर निकायों , मसलन पुलिस , कचहरी ,रेलवे , न्यायपालिका ,अस्पताल हर जगह गरीबों की स्पष्ट उपेक्षा और अमीरों या ताकतवर लोगों के लिए प्रत्यक्ष बचाव करती दिखती है।
कौन नहीं चाहता है ? ,कि उसके बैंक खाते में सदा लाखों रूपये जमा रहे ! आज एक आम भारतीय की औसत आमदनी साढ़े आठ हजार रूपये ( 8500 रूपये ) है , यह औसत है ,बहुतों को सिर्फ तीन हजार रूपयों में ही महिने का खर्च चलाना पड़ता होगा , आज इस भीषण महंगाई में जहाँ हरी सब्जी भी औसतन 50 रूपये प्रतिकिलो है । वहाँ पैसे बचाकर बैंक में जमा करना कितना दुश्कर है ,वह तो उसका भुक्तभोगी ही जान सकता है !
इसके अतिरिक्त ,बच्चों की फीस ,मकान का किराया ,दवा का खर्च, खाने का खर्च आदि बहुत से खर्च, जोड़कर बैंक वाले देखें , कि 8500 रूपये कमाने वाला व्यक्ति बैंक में कैसे पैसे जमा कर देगा? आज एक किसान मात्र 47000 रूपये ऋण न चुका पाने की वजह से, उसी बैंक द्वारा खेत कुर्क किये जाने के डर से आत्महत्या कर ले रहा है, और वही बैंक ,इसी देश में पाँच लाख करोड़ (500000,0000000 रूपये) मतलब पचास खरब रूपये पूंजीपतियों का एनपीए के तहत बट्टे खाते में डाल देता है, क्यों ?
बैंकों का यह कृत्य ,गरीब लोगों के प्रति उपेक्षा और पूंजीपतियों को संरक्षण का, इस प्रशासन, न्याय व्यवस्था और सरकार की विद्रूपता का एक घिनौना चेहरा है और इस देश के कानून का यह एक उदाहरण ही, इस कथन को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि इस कथित लोकतंत्र में एक ही कानून गरीब और किसान को बुरी तरह कुचलकर मार देने और सत्ता के लाड़ले पूँजीपतियों और ताकतवरों की रक्षा करने का काम बहुत खूबसूरती से करती है ।
— निर्मल कुमार शर्मा
जो अपने बैंक खातों में न्यूनतम अवशेष नहीं रख सकते, वे जनधन खाता खोल सकते हैं, जिनमें ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है. बैंकों को खातों के रखरखाव पर बहुत खर्च करना पड़ता है. ये शुल्क इनका बहुत छोटा भाग हैं.