गीतिका – लेखनी की धार की
कीजिए ना बात हमसे, तीर और तलवार की
है बहुत ताक़त बड़ी, इस लेखनी की धार की।
ज़ख़्म क्या नासूर भी, इससे बना सकता हूँ मैं
पर बहाई मैंने नदियाँ, इससे अपने प्यार की।
एक दोगे तो मिलेगा, कई गुना बढ़कर तुम्हें
है यही नियमावलि, इस प्यार के व्यापार की।
आप सोने और चाँदी से, खरीदोगे मुझे?
मैं कोई वस्तु नहीं हूँ, आपके बाज़ार की।
आओ पल में बाँट लें, अपने खुशी-ग़म दोस्तों
है बहुत छोटी उमर, इतने बड़े संसार की।
लूट लो तुम पर लुटाता, आज दौलत है ‘शरद’
गीत-ग़ज़लों से बनी, जागीर अपने प्यार की।
— शरद सुनेरी