गज़ल
पानी यूँ बरसा हर कोना सा रहा तरसा
जल-थल कही थोडा कही वेहिसाब गहरा
कही तुफान सा तबाही भरा जलवा माना
कुछ दिन अभी आये तो सहना होगा ठहरा
सुमंदर का कतरा काफी हैं रंग जमाने को
नीले रंग पाया पैमाना होश उड़ाने को पहरा
कश्ती भाग रही तेज-ब-तेज ठंडी हवायों में
पानी की लहरों में मुकाबला सा जाना सहरा
छु ना सकी नाविक को उठती लहरे उन्मादी
दिल मचला रेखा बेपनाह जल देख सुनहरा
— रेखा मोहन