मेरे मन में झाँका ही कब
मेरे मन में झाँका ही कब
तुमने मुझको समझा ही कब
कहते हो मैं गैर नही हूँ
तुमने अपना माना ही कब
अधरों का हँसना तो देखा
मन का रोना देखा ही कब
रुक तो जाता जाने वाला
तुमने मनसे रोका ही कब
हिस्सा तो सबका था लेकिन
सबके हिस्से आया ही कब
जिसको वापस माँग रहे हो
कर्जा मुझ तक पहुंचा ही कब
सरकारी रहमत का बादल
मुफलिस के घर बरसा ही कब
सतीश बंसल
१३.०८.२०१८